तेम तेने जाणनारुं ज्ञान पण अनेकान्तस्वरूप छे; अने द्रव्यश्रुतमां पण तेने कहेवानी
ताकात छे. जाणवानी ताकात ज्ञानमां छे ने कहेवानी ताकात वाणीमां छे; विस्पष्ट
तर्कणारूप जे भावश्रुतज्ञान तेमां सर्वे पदार्थोने जाणवानी ताकात छे. मोक्षमार्गने
साधनारा श्रमण–मुनिराज तेमज श्रावको अने अव्रती सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माओ पण
आगमज्ञानथी स्व–परनुं यथार्थस्वरूप जाणनारा छे, स्व–परनुं भेदज्ञान करीने पोताने
शुद्धपणे (एकलो, परथी जुदो) अनुभवे छे. आगमचक्षुरूप जे भावश्रुत तेमां समस्त
पदार्थोनुं स्वरूप स्पष्ट जाणी लेवानी ताकात छे. जयां आगमज्ञान साचुं न होय, जयां
तत्त्वश्रद्धा चोकखी न होय त्यां संयमदशा होती नथी. –केमके स्व शुं अने पर शुं –एनी
तो एने खबर नथी, ज्ञान शुं अने कषाय शुं तेनी भिन्नतानुं तो भान नथी, ते तो
काया अने कषायोमां एकत्वबुद्धिथी वर्ते छे, तो तेने विषय–कषायोथी निवृत्तिरूप संयम
क््यांथी होय? अरे, हजी तो संयमदशा केवी होय एनी खबर पण जेने न होय तेने
मोक्षमार्ग केवो? ने मुनिपणुं केवुं? बापु! मुनिपणु ए तो हालतोचालतो मोक्षमार्ग छे.
मुनिदशा एटले साक्षात् मोक्षमार्ग. अहा, एना महिमानी शी वात! आ तो
वीतरागनो अलौकिक मार्ग छे, एमां मुनिदशा पण कोई अलौकिक छे. ज्ञान अने साची
श्रद्धा वगर ते मुनिदशा होती नथी.
भले, मुनि जेवो उग्र शुद्धअनुभव श्रावकने न होय, पण देहथी भिन्न अने रागादिथी
भिन्न उपयोगस्वरूप शुद्ध आत्मा केवो छे तेनो अनुभव चोथा गुणस्थाने पण थई
गयो छे. आवा अनुभव उपरांत मुनिदशा केवी होय तेनी आ वात छे. रागथी ने
देहनी क्रियाथी धर्म माननारा अज्ञानी जीवोने तो श्रद्धानीये खबर नथी ने संयमनी
पण खबर नथी. चोथा गुणस्थाने पण पोताने शुद्धअनुभव थयो छे–तेनी धर्मीने
पोताने खबर पडे छे. ने एवा अनुभव पछी ज शुद्धात्मामां विशेष एकाग्रतावडे
मुनिदशा थाय छे. –आवा मुनिभगवंतोने ज मोक्षमार्गनी सिद्धि छे.