अने मोक्ष पूर्ण सुखरूप छे तेने जाण्या वगर ते तरफनो प्रयत्न केवी रीते करशे?
आ रीते सुख अने तेनो उपाय, तथा दुःख अने तेनां कारणो –तेनुं ज्ञान
उपयोगने पाछो केम वाळे? शुभ–अशुभ बंने आस्रव होवा छतां तेने संवर मानी
ल्ये तो तेने छोडे क््यांथी? देहनी क्रिया पोतानी माने तो तेनाथी (अजीवथी)
भिन्नता कई रीते अनुभवे? सम्यग्दर्शनपूर्वकनी शुद्धता ते खरो संवर छे, तेने
बदले देहनी क्रियाने संवर माने के रागने संवर माने तो तेनाथी जुदो पोताने केम
अनुभवे? –आ रीते तत्त्वना ज्ञान वगर मिथ्यात्व टळे नहि. भगवान! तारुं
स्वरूप भगवाने केवुं कह्युं छे तेना भान वगर तारी भूल भांगशे नहि ने तारुं
भ्रमण मटशे नहि. आत्माना ज्ञान वगर शुभभाव करीने स्वर्गे गयो त्यारे पण
अगृहीतमिथ्यात्व भेगुं लईने गयो, एटले त्यां पण दुःखी ज थयो. आत्माना
भान वगर क््यांय सुखनो स्वाद आवे नहि.
अमूर्त आत्मा बधानो जाणनार छे. जाणनारने पुण्य–पापरूप मानवो के देहरूप
मानवो ते मिथ्यात्व छे. तेणे जीवने उपयोगस्वरूप न मान्यो पण अजीवरूप ने
आस्रवरूप मान्यो, एटले तत्त्वनी विपरीत श्रद्धा थई. जीवे साचा तत्त्वोने कदी
ओळख्या नथी, तेमां भेळसेळ करीने गोटा वाळ्या छे. जाणनार तत्त्व जडनी पण
क्रिया करे एम केम बने? उपयोगनी क्रिया जडरूप केम होय? –न ज होय. चेतनमां
वर्ण–गंध–रस–स्पर्शरूप मूर्तपणुं नथी, ते तो उपयोगरूप अमूर्त छे; एनी
ओळखाण वडे ज सम्यग्दर्शन थाय छे ने मिथ्यात्व टळे छे. माटे संतोए करुणा
करीने तेनो उपदेश दीधो छे.
प्रमाणे सर्वज्ञभगवाने जोयेला उपयोगरूप जीवने जाणे तो बधा खुलासा थई जाय ने
तत्त्वोनी विपरीतता मटी जाय. उपयोगरूप आत्मा अजीव नथी एटले अजीवनी क्रिया
ते करतो नथी.