ने तेनी शक्तिथी तेनामां रूपांतर हलनचलन वगेरे थाय छे. माटे जीव अने
अजीवनी भिन्नता जाणवी. ते बंनेने भिन्न ओळखतां तत्त्वनी भूल टळे छे ने
यथार्थ श्रद्धा थाय छे.
छे. आ छ प्रकारनां द्रव्योमां जीव सिवायनां पांचे अजीव छे; ने पुद्गल सिवायना
पांचे अमूर्त छे. जगतमां आ छ ए प्रकारनां द्रव्यो सर्वज्ञदेवे स्वतं
आत्मामां सर्वज्ञस्वभाव छे–जे बीजा शेमांय नथी; शरीरमां नथी, रागमां नथी,
एवो उपयोग ते जीवनुं लक्षण छे. अलौकिक वस्तु आत्मा छे, तेना स्वभावने
बीजा कोई बाह्य पदार्थनी उपमा आपी शकाती नथी; पोताना अनुभव वडे तेने
जाणी शकाय छे. आवा आत्माने स्वानुभवथी जाणे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय.
सम्यग्दर्शन वगर सम्यग्ज्ञान के सम्यक्चारि
आंख वगरनो माणस शोभे नहि, तेम जीवनी आंख तो उपयोगरूप ज्ञान–दर्शन
छे, पुण्य–पाप ते कांई जीवनी आंख नथी; आ बहारनी आंख तो जड छे.
उपयोगस्वरूप निज आत्माने जाणवा–देखवारूप सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञानचक्षु
जेने खुल्यां नथी तेनी शुभक्रियाओ पण धर्ममां शोभती नथी, अर्थात् ते धर्मनुं
कारण थती नथी पण संसारनुं ज कारण थाय छे. पोते पोताने न देखे–न जाणे
एने धर्म केवो? सम्यक्त्वरूपी धर्मनी आंख ज तेने ऊघडी नथी.