Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
उपयोगस्वरूप आत्मा
भाई! तुं बहारनी वात सारी लगाडे छे तेने बदले आत्मा ज सारो लगाड.
(समयसार गा. ११३ थी ११५ उपरनां प्रवचनमांथी)
जेने भेदज्ञान होय तेने धर्म थाय छे. भेदज्ञान केवुं छे तेनुं आ वर्णन चाले छे.
आत्मा उपयोगस्वरूप छे; उपयोगस्वरूप आत्मा क्रोधरूप नथी. उपयोग अने क्रोध ए
बंने एक नथी पण भिन्न छे. उपयोग तो आत्मा छे, पण क्रोधादि ते खरेखर आत्मा
नथी. आ रीते क्रोधादिथी भिन्न उपयोगस्वरूप आत्मानो अनुभव करवो, श्रद्धा करवी,
ते भेदज्ञान अने सम्यग्दर्शन छे; ते धर्म छे.
आवुं भेदज्ञान जेने नथी तेने धर्म नथी. क्रोधादिमां उपयोगपणुं नथी तेथी तेने
जड कह्या छे. जो आत्मा क्रोधमय थई जाय तो तेने उपयोगपणुं न रहे, एटले ते जीव
न रहे पण उपयोग वगरनो अजीव थई जाय. आत्मा तो सदा उपयोगस्वरूप छे; तेने
शरीरादि जडथी तो भिन्नता छे, ने क्रोधादि आस्रवोथी पण भिन्नता छे. क्रोधादि भावो
जो के जीवनी विकारी अवस्था छे, पण ते ज्ञानमयभाव नथी; ज्ञानने अने ते क्रोधादिने
एकता नथी, बंनेनुं स्वरूप तद्रन जुदुं छे.
सर्वज्ञभगवाने उपयोगस्वरूप आत्मा जेवो जोयो अने पूर्ण साध्यो तेवो ज
वाणीद्वारा दर्शाव्यो छे. बधाय आत्माओ उपयोगस्वरूप छे. उपयोग साथे जीवने त्रिकाळ
एकता छे, केमके उपयोग तेनुं स्वरूप ज छे; पण उपयोगनी माफक अन्य जड पदार्थो साथे
पण जो आत्माने एकता होय तो आत्मा पोते जड थई जाय, जीवनुं जीवपणुं न रहे
एटले के ते अजीव थई जाय; पछी ‘आ जीव ने आ अजीव’ एवो कोई भेद जगतना
पदार्थोमां रहे नहिं; अने जीव–अजीवनी भिन्नताना भान वगर धर्म पण थाय नहीं.
सर्वज्ञभगवाने अतीन्द्रियज्ञानवडे आखुं विश्व प्रत्यक्ष जोयुं, तेमां आत्मा सदाय
उपयोगस्वरूप जोयो छे. उपयोगने अने क्रोधादिभावोने भेळसेळपणुं नथी. जेम क्रोध ते
उपयोग नथी तेम जडकर्मो के शरीरादि ते पण उपयोग नथी; ते उपयोगथी शून्य एवा
अचेतन छे, अहा, परभावोथी भिन्न आवो पोतानो आत्मा–तेने अंतरमां
उपयोगस्वरूपे अनुभवमां ल्यो. ‘आत्मउपयोग’ वडे अनुभवमां आवे छे; रागवडे ते
अनुभवमां न आवे.