Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : ५ :
जीवोने बहारनी वात सारी लागे छे, ने तेमां रागादि करीने रोकाई जाय छे;
पण ते रागादिथी पार उपयोगस्वरूप आत्मा अंदरमां शुं चीज छे ते लक्षमां लेता नथी.
तेनो प्रेम करता नथी. भाई, तुं बहारनी वात सारी लगाडे छे तेने बदले तारो
उपयोगस्वरूप आत्मा ज सारो लगाड. आनंदकंद आत्मामां एक विकल्पनो अंश पण
नथी; एक शुभ विकल्पने (–भले ते विकल्प वीतराग भगवान तरफनो होय–तेने)
पण जे आत्मानुं स्वरूप माने छे, के तेनाथी मोक्षमार्गनो लाभ थवानुं माने छे, तेणे
उपयोगस्वरूप आत्माने जाण्यो नथी, ते रागादिने ज आत्मा माने छे, खरेखर ते जडने
आत्मा माने छे; केमके राग ते चेतननी जात नथी. ज्ञानथी विरुद्ध जेटला भावो छे तेने
जे आत्माना उपयोग साथे एकमेक माने छे तेने जड–चेतननी भिन्नतानुं भान नथी,
एटले भेदज्ञान नथी.
जीव सदाय उपयोगस्वरूप छे. ते उपयोगनुं उपयोगरूपे परिणमवुं ने रागरूपे न
परिणमवुं तेनुं नाम धर्म छे. धर्मी जीव पोताना उपयोगनी साथे रागना कणने पण
भेळवता नथी. एककोर उपयोगस्वरूप आतमराम; अने सामे बधा रागादिभावो ने
जड पदार्थो–ते उपयोगथी जुदा;–आवुं अत्यंत भेदज्ञान करतांवेंत बंधभावना कोई पण
अंशमां जीवने एकत्वबुद्धि–हितबुद्धि के प्रेमबुद्धि रहेती नथी; एकला पोताना
उपयोगस्वरूप शुद्ध आत्माने ज एकत्वबुद्धिथी–हितबुद्धिथी–प्रेमबुद्धिथी अनुभवे छे.
आवो आत्मअनुभव ते मोक्षमार्ग छे.
अरे भाई! तारा उपयोगस्वरूप आत्माने तो तुं ओळखतो नथी, ने बहारथी
रागमांथी धर्म लेवा मांगे छे ते तो तारो पशु जेवो अविवेक छे. जेम पशुओ घास अने
चूरमाने भेळसेळ करीने खाय छे तेम तुं पण अज्ञानथी घास जेवा रागादिने अने
चूरमा जेवा उपयोगने भेळसेळ एकमेक मानीने अशुद्धतानो स्वाद ल्ये छे, ते अविवेक
छे. भाई, अंदरमां रागथी भिन्न तारा चैतन्यस्वादने ओळख, तेना अनुभवथी तने
रागादि परभावोथी आत्मानुं अत्यंत भिन्नपणुं देखाशे.
जड अने चेतनने जगतमां कदी एकपणुं थाय नहीं. जो चेतन पोते जड थई
जाय, के जड पोते चेतन थई जाय, तो जगतमां कोई पदार्थ रहे ज नहीं. जडनुं सदाय
जडपणुं छे ने चेतननुं सदाय चेतनपणुं छे. हवे ते उपरांत अहीं तो जे रागादि–क्रोधादि
भावो छे ते पण जीवना उपयोगस्वभावथी जुदा होवाथी तेमने अचेतनपणुं छे. –आ
रीते अंदरना सूक्ष्मभेदज्ञाननी वात छे. आवुं भेदज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे.