: द्वि. अषाड : २४९५ आत्मधर्म : ७ :
आपणा एक कोलेजियन सभ्यनो पत्र
मुंबई–चेम्बुरमां आपणा उत्साही सभ्य शैलाबेन चंद्रकांत जैननो एक
पत्र अहीं रजु थाय छे–जेमां कोलेजशिक्षण करतां धार्मिकशिक्षणनी महत्ता तेमणे
प्रगट करी छे, तेमज खास प्रसंगे बालविभागना बंधुओने याद करीने हार्दिक
वात्सल्य व्यक्त कर्युं छे. विशेष तो तेमनो पत्र ज बोलशे. तेओ लखे छे:
“जीवनना घडतरमां केटलाक प्रसंगो केवी रीते मददरूप थाय छे ए हुं एक दाखला
परथी जणावुं छुं. हमणां अमारुं ईन्टर आर्टसनुं परिणाम आव्युं. हजी सांजना
तो पास थईश के नापास–एना विचार आव्या. त्यां रात्रे मारी एक सखीए
आवी मने समाचार आप्या के हुं फर्स्ट कलासमां पास थई छुं; तेमज फर्स्ट
कलासमां बहु ज ओछा (कुल १७ ज) नंबर छे. –पण सद्भाग्ये, हुं ए वखते
टाईफोईड थयो होवाथी १०४ डीग्री तावमां सेकाती हती, एटले मने एवी
सफळता माटे अभिमान करवानुं कारण न थयुं. पछी थोडा दिवस बाद ताव
ओछो थतां समय वीताववा माटे में पुस्तको मांग्या, तो मने मम्मीए भगवान
ऋषभदेव, वीतरागविज्ञान, बे सखी महाराणी चेलणा, सुकुमालचारित्र,
रत्नसंग्रह, दर्शनकथा वगेरे पुस्तको वांचवा आप्या. अंग्रेजी माध्यममां भण्या
होवाने कारणे हुं झडपथी गुजराती वांची शकती नथी एटले धीमे धीमे ए
पुस्तको वांच्या. ए वांचता मने खूब ज आनंद थयो; अने एम थयुं के जीवननी
सफळता जो हो तो धर्ममां होजो. अने ए सत्य धर्म पू. गुरुदेव सिवाय अन्य
कोई स्थाने प्राप्त थई शके एम नथी एवी पण खात्री थई ने उमळको जाग्यो के
त्यां जईने प्रेमपूर्वक गुरुदेवनी पवित्र वाणी सांभळी आ ज जीवनमां धर्म
पामुं.”
विशेषमां शैलाबेन लखे छे के ‘हुं आ रीते पास थई तेनी खुशालीमां मने
रूा. २५/– भेट मळ्या छे–जे हुं आत्मधर्मना बालविभागना मारा साधर्मीओने
ईनाम आपवा माटे मोकलुं छुं, –ते स्वीकारशो. सर्वे बालसभ्योनी धर्मवृद्धि
ईच्छती बेन शैलाना जयजिनेन्द्र! ’
(बेन! तमारी भावना अने बालसभ्यो प्रत्येनी लागणी माटे धन्यवाद!)
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