Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
• आत्मानो निर्णय कर्या पछी अनुभव माटे शुं करवुं?
आत्मा एटले ज्ञाननो ढगलो, ज्ञानपूंज; ते ज्ञानस्वरूप आत्मा रागवाळो
नथी. कर्मवाळो नथी, शरीरवाळो नथी; ते परनुं करे ए तो वात ज नथी. –
आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय कर्यो त्यां ‘हवे मारे शुं करवुं’ ए प्रश्न रहेतो
नथी. पण जे स्वभावनो निर्णय कर्यो ते स्वभाव तरफ तेनुं ज्ञान वळे छे.
निर्णयनी भूमिकामां जोके हजी विकल्प छे. हजी भगवान आत्मा प्रगट प्रसिद्ध
थयो नथी, अव्यक्तपणे निर्णयमां आव्यो छे पण साक्षात् अनुभवमां नथी
आव्यो; तेने अनुभवमां लेवा माटे शुं करवुं? के निर्णय साथे जे विकल्प छे
ते विकल्पमां न अटकवुं, पण विकल्पथी भिन्न ज्ञानने अंतर्मुख करीने
आत्मसन्मुख करवुं. विकल्प ते कांई साधन नथी. विकल्प द्वारा परनी प्रसिद्धि
छे, तेमां आत्मानी प्रसिद्धि नथी. ईंद्रियो के विकल्पो तरफ अटकेलुं ज्ञान पण
आत्माने प्रसिद्ध करी शकतुं नथी–अनुभवी शकतुं नथी. पण ते पर तरफनो
झुकाव छोडीने ज्ञानने आत्मसन्मुख करवुं ते ज आत्मानी प्रसिद्धिनी रीत छे,
ते ज अनुभवनो उपाय छे.
‘आ हुं ज्ञानस्वभाव आत्मा छुं–एवुं ज्ञान ईन्द्रिय के मन तरफनी
बुद्धिवडे थतुं नथी, ईंद्रिय के मन तरफनी बुद्धिवडे तो परनुं ज्ञान थाय छे. बधा
विकल्पोथी पार थईने आत्मस्वभाव तरफ ज्ञाननो झूकाव (आत्मसन्मुखता)
ते ज सम्यक्पणे आत्माने देखवानी अने अनुभववानी रीत छे. तेमां
स्वसंवेदन–प्रत्यक्षपणे आत्मानां श्रद्धा–ज्ञान थाय छे.
• सम्यग्दर्शन थतां आत्मा समस्त विश्व उपर तरे छे;–तरे छे एटले शुं?
तरे छे एटले जुदो रहे छे; जेम पाणीमां तरतो माणस पाणीमां डुबतो नथी
पण उपर रहे छे. तेम ज्ञानस्वभावरूपे पोताने अनुभवतो आत्मा, विकल्पोमां
डुबतो नथी, विकल्पोमां एकाकार थतो नथी, पण तेना उपर तरे छे एटले के
तेनाथी भिन्नपणे ज पोताने अनुभवे छे. तेमां आत्मानी कोई अचिंत्य परम
गंभीरता अनुभवाय छे.
• सम्यक्त्वना प्रयत्ननी शरूआत केवी छे?
अपूर्व छे, पूर्णताना लक्षे ते शरूआत छे. ‘ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय’
एटले पूर्णतानुं लक्ष; आ अपूर्णताना लक्षे शरूआत ते ज वास्तविक
शरूआत छे.