Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : ७ :
काम छे, ते कांई विकल्पनुं काम नथी. विकल्पमां आनंद नथी, तेमां तो आकुळता
ने दुःख छे; भावश्रुतमां आनंद अने निराकुळता छे.
• बीजा विकल्पो करतां तो शुद्धआत्मानो विकल्प सारो छे ने?
धर्मने माटे तो एक्केय विकल्प सारो नथी, विकल्पनी जात ज आत्माना
स्वभावथी जुदी छे, पछी तेने सारो कोण कहे? जेम बीजा विकल्पमां एकताबुद्धि
ते मिथ्यात्व छे, तेम शुद्धात्माना विकल्पमां एकताबुद्धि ते पण मिथ्यात्व छे.
बधा विकल्पोथी पार ज्ञानस्वभावने देखवो–जाणवो–अनुभववो ते सम्यग्दर्शन
सम्यग्ज्ञान छे. ते ज समयनो सार छे; विकल्पो तो बधा असार छे. भले शुद्धनो
विकल्प हो–पण तेने कांई सम्यग्दर्शन के सम्यग्ज्ञान कही शकातुं नथी; ते विकल्प
वडे भगवाननो भेटो थतो नथी. विकल्प ते कांई चैतन्यदरबारमां पेसवानो
दरवाजो नथी. ज्ञानबळे ‘ज्ञानस्वभावनो निर्णय’ ते ज चैतन्यदरबारमां
पेसवानो दरवाजो छे.
• ज्ञाननी प्राप्ति क्यांथी थाय छे?
ज्ञाननी प्राप्ति सर्वज्ञस्वभावी आत्मामांथी थाय छे, ज्ञाननी प्राप्ति विकल्पमांथी
नथी थती. अंदर शक्तिमां जे पडयुं छे ते ज आवे छे, बहारथी नथी आवतुं.
अंदरनी निर्मळ ज्ञानशक्तिमां अभेद थतां पर्याय सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञानरूपे
परिणमी जाय छे.
• सम्यग्दर्शन माटेनी पहेली शरत शुं छे?
पहेली शरत ए छे के ‘हुं ज्ञानस्वभाव छुं’ एम श्रुतज्ञानना अवलंबनथी
निश्चय करवो. सर्वज्ञभगवाने समवसरणमां दिव्यध्वनिवडे जे भावश्रुत उपदेश्युं
ते अनुसार श्रीगुरु पासेथी श्रवण करीने अंदर भावश्रुत वडे ज्ञानस्वभावनो
निर्णय करवो. भगवाने श्रुतमां एम ज कह्युं छे के ज्ञानस्वभाव ते शुद्धआत्मा
छे. एवो निर्णय करीने गौतमादि जीवो भावश्रुतरूपे परिणम्या, तेथी ‘भगवाने
भावश्रुतनो उपदेश आप्यो’ एम कह्युं. भगवानने तो केवळज्ञान छे, परंतु
श्रोताओ भावश्रुतवाळा छे–तेथी भगवाने भावश्रुतनो उपदेश दीधो एम
कहेवाय छे. सर्वज्ञभगवाने उपदेशेला श्रुतमां एवो निर्णय कराव्यो छे के
‘आत्मा ज्ञानस्वभाव छे.’ आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवो ते सम्यग्दर्शन
माटेनी पहेली शरत छे.