: १० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
वीतरागविज्ञान–प्रश्नोत्तरी
वीतरागविज्ञान भाग १ एटले के छहढाळानां प्रथम अध्यायनां
प्रवचनो, तेमांथी दोहन करीने २०० प्रश्न–उत्तर आत्मधर्म अंक
३०४ तथा ३०प मां आप्या हता. टूंकी भाषामां ने सुगम शैलीमां
आ प्रश्नोत्तर सौने गम्या छे. ते ज प्रमाणे वितरागविज्ञानना
बीजा भागमांथी पण २४० प्रश्नोत्तर अहीं आपवामां आवे छे.
२०१. जीवने ईष्ट शुं छे?
दुःखथी छूटवुं ने सुखी थवुं ते.
२०२. जीवने दुःखनुं कारण शुं छे?
मिथ्याश्रद्धा–मिथ्याज्ञान–मिथ्याचारित्र
ते दुःखनुं कारण छे.
२०३. संसारनी कई गतिमां दुःख छे?
संसारनी चारेय गतिमां दुःख छे.
२०४. नरकमां छेदन–भेदन, ठंडी–
गरमीनुं दुःख छे–ए खरुं?
ना, ए संयोगनी वात छे; खरुं दुःख
जीवना मिथ्यात्वादि भावोनुं छे.
२०प. आ जगतमां सर्वोत्कृष्ट वस्तु कई
छे? वीतराग–विज्ञान.
२०६. वीतरागविज्ञान न होय तो शुं
थाय? तो जीव दुःखी थाय.
२०७ जीवने दुःख देनार मोटो शत्रु
कोण? मिथ्यात्व ते महादुःख देनार
शत्रु छे.
२०८. तेनाथी बचवा माटे ढाल कई?
वीतरागविज्ञान ते मिथ्यात्वशत्रुथी
बचवा माटेनी मजबुत ढाळ छे.
२०९. दुःखथी बचवा शुं करवुं?
तेना कारणरूप मिथ्यात्वादिने
ओळखीने तेनुं सेवन छोडवुं.
२१०. निगोदथी नवमी ग्रैवेयक सुधी
अज्ञानीए शुं कर्युं?
चारे गतिना अवतारमां दुःख
भोगव्यां.
२११. नरकमां तो जीव दुःखी थयो, पण
स्वर्गमां?
–त्यां पण अज्ञानथी ते दुःखी ज थयो.
२१२. सुख क्यां छे?
ज्यां ज्यां सम्यक्त्वादि छे त्यां ज
सुख छे.
२१३. दुःख क्यां छे?
ज्यां ज्यां मिथ्यात्वादि छे त्यां दुःख
ज छे.