: १२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
मोहनी तीव्रता ने चेतनानी अत्यंत
हीनताने लीधे.
२३३. हवे आ उत्तम मनुष्य–अवसरमां
शुं करवुं?
मिथ्या भावोने छोडीने सम्यक्त्वने भजो.
२३४. राग–अशुभ हो के शुभ, ते बंने
केवा छे?
बंनेमां दुःख छे; ने बंने संसारनुं
कारण छे.
२३प. शुभरागथी शुं मळे? –ने शुं न
मळे? शुभरागथी स्वर्ग मळे, पण
आत्मा न मळे.
२३६. शुभरागथी सम्यग्दर्शनादि कोई
गुण मळे?
–ना. राग ते दोष छे, तेनाथी गुण न
मळे.
२३७. शुभराग ते गुण छे के दोष?
२३८. शुभराग ते मोक्षसुखनुं कारण
थाय? ना; राग पोते ज दुःख छे, ते
सुखनुं कारण न थाय.
२३९. अज्ञानी शुभरागने केवो समजे
छे? अज्ञानथी ते तेने सुखनुं ने
मोक्षनुं कारण समजे छे.
२४०. सुख शुं? –दुःख शुं?
वीतरागविज्ञान ते सुख; रागद्वेष
अज्ञान ते दुःख.
२४१. आ जाणीने शुं करवुं?
दुःखनां कारणोथी दूर था; सुखनां
कारणने सेव.
२४२. संसारनुं मूळ शुं छे?
हुं ज्ञान छुं–ए भूलीने, हुं राग ने हुं
शरीर एवी मिथ्याबुद्धि ते संसारनुं
मूळ छे.
२४३. मिथ्यात्व सहितनां ज्ञान ने चारित्र
केवां छे?
ते मिथ्याज्ञान ने मिथ्याचारित्र छे.
२४४. आस्रव शुं छे?
मिथ्यात्वादि भावो ते आस्रव छे.
२४प. ते आस्रवो केवां छे?
ते ज्ञानथी विरुद्धस्वभाववाळां छे.
२४६. जीव केवो छे? शरीर केवुं छे?
जीव ज्ञानस्वरूप छे; शरीर जड छे.
२४७. शरीरादि अजीवनुं काम जीवनुं माने तो?
तो तेणे जीव अने अजीवने जुदा
जाण्या नथी.
२४८. शुभभावने धर्म माने तो?
तो तेणे ज्ञानने अने आस्रवने जुदा
जाण्या नथी.
२४९. वाणी ते कोनी क्रिया छे?
ते अजीवनी क्रिया छे, जीवनी नहीं.
२प०. जीवने कर्मो दुःखी करे छे? के ते
ऊंधा भावथी दुःखी छे?
जीव पोताना ऊंधा भावथी दुःखी छे.
२प१. सुख–दुःख कोनामां छे?
जीवमां छे; जडमां सुख–दुःख नथी.
(अनुसंधान पृष्ट ३६ पर)