Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : १५ :
शके नहि. दरेक द्रव्य जुदा जुदा स्वतंत्र छे, कोई कोईनुं कांई करी शके नहि–आम जाणवुं
ते ज भगवानना शास्त्रनी ओळखाण छे, ते ज श्रुतज्ञान छे. आ तो हजी स्वरूपने
समजनारनी पात्रता कहेवाय छे.
जैनधर्म एटले के आत्मानो वीतरागस्वभाव, तेनी प्रभावना धर्मी जीवो करे
छे. आत्माने जाण्या वगर आत्माना स्वभावनी वृद्धिरूप प्रभावना केवी रीते थाय?
प्रभावना करवानो विकल्प ऊठे ते पण परना कारणे नथी. बीजा माटे कांई पण
पोतामां थाय एम कहेवुं ते जैनशासननी मर्यादामां नथी. जैनशासन तो वस्तुने
स्वतंत्र स्वाधीन परिपूर्ण स्थापे छे.
आत्माना स्वभावने ओळखीने कषायभावथी पोताना आत्माने बचाववो–ते
करवानुं भगवाने कह्युं छे; ते ज खरी दया छे. जीव पोताना आत्मानो निर्णय कर्या
वगर शुं करशे? भगवानना श्रुतज्ञानमां तो एम कह्युं छे के–तुं–ताराथी परिपूर्ण वस्तु
छो. दरेक तत्त्वो पोताथी ज स्वतंत्र छे, कोई तत्त्वने बीजा तत्त्वोनो आश्रय नथी. –आ
प्रमाणे वस्तुना स्वरूपने छूटुं समजीने स्वाश्रये वीतरागभाव प्रकट करवो ते अहिंसा
छे; अने एकबीजानुं करी शके एम वस्तुने पराधीन मानीने कर्तृत्वबुद्धि ने राग–द्वेष
करवा ते हिंसा छे.
• आनंद प्रगटाववानी भावनावाळो शुं करे? •
जगतमां जीवोने सुख जोईए छे; सुख कहो के धर्म कहो. धर्म करवो छे
एटले आत्मशांति जोईए छे, आत्मानी अवस्थामां दुःखनो नाश करीने वीतरागी
आनंद प्रगट करवो छे. ए आनंद एवो जोईए के जे स्वाधीन होय; जेना माटे
परनुं अवलंबन न होय. आवो आनंद प्रगटाववानी जेने यथार्थ भावना होय ते
जिज्ञासु कहेवाय. पोतानो पूर्णानंद प्रगटाववानी भावनावाळो जिज्ञासु पहेलां ए
जुए के एवो पूर्णानंद कोने प्रगटयो छे? ने कई रीते प्रगटयो छे. पोताने हजी
तेवो आनंद प्रगट नथी, केमके जो पोताने तेवो आनंद प्रगट होय तो प्रगटाववानी
भावना न होय. एटले पोताने हजी तेवो आनंद प्रगटयो नथी, पण पोताने जेनी
भावना छे तेवो आनंद बीजा कोईकने छे, अने जेमने ते आनंद प्रगटयो छे तेमनी
पासेथी पोते ते आनंद प्रगटाववानो साचो मार्ग जाणवा चाहे छे.–एटले आमा
साचां निमित्तोनी ओळखाण अने पोतानी पात्रता, बंने आवी गया. आटलुं करे
त्यां सुधी हजी जिज्ञासु छे.