एम नक्की करे छे के–हुं एक आत्मा मारुं परिपूर्ण सुख प्रगटाववा मागुं छुं, तो तेवुं
परिपूर्ण सुख कोईने प्रगटयुं होवुं जोईए. जो परिपूर्ण सुख–आनंद प्रगट न होय तो
दुःखी कहेवाय. जेने परिपूर्ण अने स्वाधीन आनंद प्रगटयो होय ते ज संपूर्ण सुखी छे;
तेवा सर्वज्ञ छे. –आ रीते जिज्ञासु पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनो निर्णय करे छे. परनुं करवा
मूकवानी वात तो छे ज नहि; ज्यारे परथी जरा छूटो पडयो त्यारे तो आत्मानी
जिज्ञासा थई छे. आ तो परथी खसीने हवे जेने पोतानुं हित करवानी झंखना जागी छे
एवा जिज्ञासु जीवनी वात छे. परद्रव्य प्रत्येनी सुखबुद्धि अने रुचि टाळीने स्वभावनी
रुचि करी ते पात्रता छे.
टाळवा समर्थ नथी. पोतानी भूल टाळवा माटे एकले के सम्यग्दर्शन करवा माटे पात्र
जीवे पहेलां शुं करवुं? ते कहे छे.
ज्ञानमां रुचि अने पुरुषार्थथी आत्मकल्याण थाय छे. पोतानुं कल्याण करवा माटे,
जेओने पूर्ण कल्याण प्रगटयुं छे ते कोण छे, तेओ शुं कहे छे, तेओए प्रथम शुं कर्युं हतुं–
एनो पोताना ज्ञानमां निर्णय करवो पडशे; एटले के सर्वज्ञनुं स्वरूप जाणीने तेमना
कहेला श्रुतज्ञानना अवलंबनथी पोताना आत्मानो निर्णय करवो जोईए; ए प्रथम
कर्तव्य छे. कोई परना अवलंबनथी धर्म प्रगटतो नथी; छतां ज्यारे पोते पोताना
पुरुषार्थथी समजे छे त्यारे तेमां निमित्त तरीके सत्देवगुरु ज होय छे.
पोतानुं पूर्ण सुख प्रगट करी शके छे अने पोते समजे त्यारे साचा देव–गुरु–शास्त्रो ज
निमित्तरूप होय छे. जेने स्त्री, पुत्र, पैसा, वगेरेनी एटले के संसारना निमित्तो
तरफनी तीव्र प्रीति होय ने धर्मनां निमित्तो देव–गुरु–शास्त्र प्रत्येनी प्रीति