तो ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करवानुं छे.
जे कांई पराश्रित परिणमन छे ते बधुंय बंधस्वरूप छे ने बंधनुं ज कारण छे. –माटे
ज्ञानस्वभावनी अंर्तअनुभूति करीने ज्ञानरूपे परिणमवुं ते ज आगमनुं विधान छे.
बधाय आगमनो सार शुं? के ज्ञानरूपे परिणमवुं ते; अंतर्मुख थईने जे ज्ञानभावे
परिणम्यो तेणे सर्वे आगमनुं रहस्य जाण्युं. अने घणां शास्त्रो भणवा छतां जो
अंतर्मुंख ज्ञानभावे न परिणम्यो, –रागथी भिन्न ज्ञाननो अनुभव न कर्यो तो तेनुं
बधुंय जाणपणुं अज्ञान ज छे. शास्त्र तरफना विकल्पथी, के शुद्धनयना विकल्पथी मने
जराय लाभ थशे–एम जे माने छे ते जीव ते विकल्पनो ज पक्षपात करीने, विकल्पना
अनुभवमां ज अटके छे. पण तेनाथी आघो खसीने ज्ञाननो अनुभव करतो नथी,
एटले आगमना फरमाननी तेने खबर नथी. आगमनुं फरमान तो रागथी भिन्न
चैतन्यनो अनुभव करवानुं छे; तेने बदले अज्ञानी पुण्यना पक्षमां अटकी गयो.
तो तेने सुशील केम कहेवाय? पुण्य कांई मोक्षमार्गना आश्रये नथी, ते तो बंधमार्गना
ज आश्रये छे जीवस्वभावना आश्रये परिणमता जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज
मोक्षनुं कारण छे. –ए सिवाय पराश्रये परिणमता रागादिभावो–पछी ते अशुभ हो के
शुभ हो–संसारनुं ज कारण छे. जे जीव ते रागनी रुचि करे छे ते संसारमां ज रखडे छे.
भेदज्ञान करीने जे जीव रागथी विरक्त थाय छे–ते ज कर्मबंधनथी छूटे छे. व्रतादि
शुभभावो छे ते तो जीवना परमार्थस्वभावथी बाह्य