Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : २३ :
पुण्यकर्मनो पक्षपाती (=अज्ञानी)
पुण्य ते बंधनुं ज कारण होवा छतां तेने जे मोक्षनुं
कारण माने छे ते जीव पुण्यकर्मनो पक्षपाती छे; पुण्यकर्मना
पक्षपातमां तेने शो दोष आवे छे ते आचार्यदेव (गाथा
१प४ मां) बतावे छे; अने कहे छे के जिनागमनुं विधान
तो ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करवानुं छे.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ते अबंध छे, ने तेना आश्रये परिणमतुं जे ज्ञान ते ज
मोक्षनुं कारण छे, केम के ते ज्ञान पोते बंधनरहित छे. अने ते ज्ञानपरिणमन सिवायनुं
जे कांई पराश्रित परिणमन छे ते बधुंय बंधस्वरूप छे ने बंधनुं ज कारण छे. –माटे
ज्ञानस्वभावनी अंर्तअनुभूति करीने ज्ञानरूपे परिणमवुं ते ज आगमनुं विधान छे.
बधाय आगमनो सार शुं? के ज्ञानरूपे परिणमवुं ते; अंतर्मुख थईने जे ज्ञानभावे
परिणम्यो तेणे सर्वे आगमनुं रहस्य जाण्युं. अने घणां शास्त्रो भणवा छतां जो
अंतर्मुंख ज्ञानभावे न परिणम्यो, –रागथी भिन्न ज्ञाननो अनुभव न कर्यो तो तेनुं
बधुंय जाणपणुं अज्ञान ज छे. शास्त्र तरफना विकल्पथी, के शुद्धनयना विकल्पथी मने
जराय लाभ थशे–एम जे माने छे ते जीव ते विकल्पनो ज पक्षपात करीने, विकल्पना
अनुभवमां ज अटके छे. पण तेनाथी आघो खसीने ज्ञाननो अनुभव करतो नथी,
एटले आगमना फरमाननी तेने खबर नथी. आगमनुं फरमान तो रागथी भिन्न
चैतन्यनो अनुभव करवानुं छे; तेने बदले अज्ञानी पुण्यना पक्षमां अटकी गयो.
पाप कर्म तो कुशील छे–खराब छे, परंतु पुण्यकर्म तो सुशील छे, –सारूं छे, एम
अज्ञानी माने छे. आचार्यदेव कहे छे के अरे भाई! पुण्य पण संसारमां ज रखडावे छे–
तो तेने सुशील केम कहेवाय? पुण्य कांई मोक्षमार्गना आश्रये नथी, ते तो बंधमार्गना
ज आश्रये छे जीवस्वभावना आश्रये परिणमता जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज
मोक्षनुं कारण छे. –ए सिवाय पराश्रये परिणमता रागादिभावो–पछी ते अशुभ हो के
शुभ हो–संसारनुं ज कारण छे. जे जीव ते रागनी रुचि करे छे ते संसारमां ज रखडे छे.
भेदज्ञान करीने जे जीव रागथी विरक्त थाय छे–ते ज कर्मबंधनथी छूटे छे. व्रतादि
शुभभावो छे ते तो जीवना परमार्थस्वभावथी बाह्य