Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
छे, ते व्रतादिना विकल्पो न होवा छतां ज्ञानपरिणाम वडे ज्ञानीओ मोक्षने साधे छे,
अने अज्ञानीने ते व्रतादिना शुभ परिणामो होवा छतां ते मोक्ष पामतो नथी. माटे
ज्ञान ज मोक्षनुं कारण छे. अने ज्ञानरूपे परिणमवुं ते ज आगमनुं फरमान छे.
आ रीते, पुण्य ते मोक्षनुं कारण नथी पण बंधनुं ज कारण छे–एम आचार्यदेवे
समजाव्युं; छतां हजी पण जे जीव अज्ञानथी पुण्यकर्मनो पक्षपात करे, –तेने शुं दोष
आवे छे? ते फरीने पण समजावे छे–
परमार्थबाह्य जीवो अरे! जाणे न हेतु मोक्षनो,
अज्ञानथी ते पुण्य ईच्छे हेतु जे संसारनो. (१प४)
जेओ परमार्थथी बाह्य छे एटले के चिदानंदमूर्ति आत्माना अनुभवथी रहित छे
तेओ मोक्षना हेतुने जाणता नथी, अने अज्ञानथी पुण्यने ज मोक्षनुं कारण मानीने तेने
ईच्छे छे. जो के पुण्य पण संसारगमननो हेतु छे तोपण अज्ञानी तेने मोक्षनो हेतु माने
छे; ते एम माने छे के हुं मोक्षना उपायने सेवुं छुं पण खरेखर रागनी रुचिथी ते
संसारमार्ग ज सेवी रह्यो छे. मोक्ष कोने कहेवो ने तेनो मार्ग शुं–तेनी तेने खबर पण नथी.
मोक्ष एटले शुं? के समस्त कर्मपक्षनो नाश करवाथी जे शुद्धात्मानो लाभ थाय–
निजस्वरूपनी प्राप्ति थाय–ते मोक्ष छे. पुण्य कर्मना पण नाशथी मोक्ष थाय छे; पुण्य ते
पण कर्मना पक्षमां छे, ते कांई आत्माना स्वभावनी चीज नथी.
आवा मोक्षना कारणरूप सामायिक छे. ते सामायिक केवी छे? के सम्यग्दर्शन
ज्ञान–चारित्र–स्वभाववाळा परमार्थभूत ज्ञाननुं अनुभवन ते सामायिक छे; शरीर
बेघडी स्थिर रहे के अमुक पाठ भणी जाय तेने कांई सामायिक नथी कहेता. अहो,
सामायिकमां तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र समाई जाय छे, एकला ज्ञानना
अनुभवनरूप आवी सामायिक ते मोक्षनुं कारण छे. ते सामायिक चिदानंदस्वभावमां ज
एकाग्रता छे, अने ते समयसारस्वरूप छे एटले शुद्धात्माना अनुभवस्वरूप छे. आवी
सामायिक पुण्य–पापना दुरंत कर्मचक्रथी पार छे. मात्र पापपरिणामथी निवर्ते ने अत्यंत
स्थूळ एवा पुण्यकर्मोमां वर्त्या करे ने तेना ज अनुभवथी संतुष्ट थईने मोक्षनुं कारण
मानी ल्ये तो ते जीव नामर्द छे, रागथी पार थवानो पुरुषार्थ तेनामां नथी; कर्मना
अनुभवथी खसीने ज्ञानना अनुभवमां ते आवतो नथी. हिंसा वगेरे स्थूळ