अने अज्ञानीने ते व्रतादिना शुभ परिणामो होवा छतां ते मोक्ष पामतो नथी. माटे
ज्ञान ज मोक्षनुं कारण छे. अने ज्ञानरूपे परिणमवुं ते ज आगमनुं फरमान छे.
आवे छे? ते फरीने पण समजावे छे–
अज्ञानथी ते पुण्य ईच्छे हेतु जे संसारनो. (१प४)
ईच्छे छे. जो के पुण्य पण संसारगमननो हेतु छे तोपण अज्ञानी तेने मोक्षनो हेतु माने
छे; ते एम माने छे के हुं मोक्षना उपायने सेवुं छुं पण खरेखर रागनी रुचिथी ते
संसारमार्ग ज सेवी रह्यो छे. मोक्ष कोने कहेवो ने तेनो मार्ग शुं–तेनी तेने खबर पण नथी.
पण कर्मना पक्षमां छे, ते कांई आत्माना स्वभावनी चीज नथी.
बेघडी स्थिर रहे के अमुक पाठ भणी जाय तेने कांई सामायिक नथी कहेता. अहो,
सामायिकमां तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र समाई जाय छे, एकला ज्ञानना
अनुभवनरूप आवी सामायिक ते मोक्षनुं कारण छे. ते सामायिक चिदानंदस्वभावमां ज
एकाग्रता छे, अने ते समयसारस्वरूप छे एटले शुद्धात्माना अनुभवस्वरूप छे. आवी
सामायिक पुण्य–पापना दुरंत कर्मचक्रथी पार छे. मात्र पापपरिणामथी निवर्ते ने अत्यंत
स्थूळ एवा पुण्यकर्मोमां वर्त्या करे ने तेना ज अनुभवथी संतुष्ट थईने मोक्षनुं कारण
मानी ल्ये तो ते जीव नामर्द छे, रागथी पार थवानो पुरुषार्थ तेनामां नथी; कर्मना
अनुभवथी खसीने ज्ञानना अनुभवमां ते आवतो नथी. हिंसा वगेरे स्थूळ