Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
चंदनना वनने कोई मूरखो भस्म करी नांखे, छासने माटे कोई रत्नने वेची दे, नानकडा
दोराना कटकाने माटे रत्ननी कंठी तोडी नांखे, तेम क्षणिक पुण्यनी मीठास आडे तुं
आखा चिदानंदतत्त्वनो आश्रय छोडी दे छे, रागनी मीठास आडे तुं आखा मोक्षमार्गने
छोडी रह्यो छे ने संसारमार्गने आदरी रह्यो छे, –तो तारी मुर्खाईनुं शुं कहेवुं? बापु?
मोक्षनी ईच्छाथी तें ज्यारे दिक्षा लीधी त्यारे शुद्धात्माना अनुभवरूप सामायिकनी
प्रतिज्ञा करी हती, परंतु तुं तो शुभरागना ज अनुभवमां अटकी गयो, रागथी भिन्न
चैतन्यनी तें श्रद्धा पण न करी; मोक्षना साधनरूप साची सामायिकने तें ओळखी पण
नहीं. चिदानंदस्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवरूप सामायिक ते मोक्षनुं कारण छे. –एवो
अनुभव जेओ नथी करता ने रागना ज अनुभवने मोक्षनुं साधन मानीने तेमां अटकी
जाय छे तेओ कर्मचक्रने पार ऊतरवा माटे पुरुषार्थ वगरना छे; चैतन्यस्वभावनो
पुरुषार्थ तेने जाग्यो नथी. व्यवहारे अर्हंत भगवानना मार्गने ज माने छे, बीजा
कुमार्गने तो मानतो नथी, भगवाने कहेल उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप वस्तुने तथा नवतत्त्वो
वगेरेने व्यवहारे बराबर माने छे, पण अंतरमां राग अने चैतन्यनी भिन्नतानुं वेदन
करता नथी, स्थूळ लक्षपणे शुभरागमां ज अटकी जाय छे–एवा जीवो, शुभरागने
संसारनुं कारण होवा छतां मोक्षनुं कारण मानी रह्या छे; तेथी पुण्यनो–रागनो ज
आश्रय करे छे, पण तेनो आश्रय छोडता नथी ने ज्ञाननो आश्रय करता नथी एटले
तेओ संसारमां ज परिभ्रमण करे छे. आ रीते पुण्यकर्मना पक्षपाती जीवो संसारमां ज
रखडे छे, तेओ मोक्षने पामता नथी. मोक्ष तो ज्ञान वडे ज पमाय छे, पुण्य वडे नहीं.
ज्ञानस्वभावनो आश्रय करीने ज्ञानपणे परिणमवुं ते ज मोक्षनुं कारण छे. जेओ
अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वभावनो आश्रय करे छे तेओ ज मुक्तिने पामे छे. माटे
ज्ञानस्वभावनो आश्रय करीने ज्ञानरूपे परिणमवुं ते ज आगमनी आज्ञा छे.
• ज्ञानी न ईच्छे पुण्यने •
अज्ञानी चैतन्यनुं भान भूलीने रागनी धूनमां चडी गयो. ज्ञानी चैतन्यनी धून
आडे रागने जरा पण ईच्छता नथी; शुद्धआत्मा सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवरूप जे
मोक्षमार्ग छे तेने ज ज्ञानी सेवे छे. पुण्यने जरापण मोक्षमार्ग मानता नथी. जेने
पुण्यनी रुचि छे तेने संसारनी रुचि छे, तेने मोक्षनी रुचि नथी. मोक्ष तो आत्मानी