Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : २७ :
पूर्ण शुद्धता छे, तो तेनो मार्ग पण शुद्धतारूप ज होय. राग तो अशुद्धता छे, अशुद्धता
ते शुद्धतानो मार्ग केम होय? न ज होय. श्रीमद्राजचंद्रजी कहे छे के–
मोक्ष कह्यो निज शुद्धता, ते पामे ते पंथ;
समजाव्यो संक्षेपमां सकळ मार्ग निर्ग्रंथ.
आचार्य भगवान कहे छे के आत्मस्वभावना आश्रये थता जे श्रद्धा–ज्ञान–
व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग सधातो नथी; मोक्षमार्ग तो परमार्थ–स्वभावना
आश्रये ज सधाय छे. परमार्थरूप एवा ज्ञानस्वभावना आश्रये ज सम्यग्दर्शन ज्ञान–
चारित्ररूप मोक्षमार्ग प्रवर्ते छे, तेथी जेओ परमार्थ स्वभावनो आश्रय करे छे तेओ ज
मुक्तिने पामे छे. जेओ निश्चयना विषयने छोडीने व्यवहारना आश्रये प्रवर्ते छे,
व्यवहारना आश्रयथी लाभ थवानुं माने छे तेओ मोक्षने पामता नथी पण संसारमां
रखडे छे. व्रत–तप वगेरे शुभकर्मो केवा छे? के परमार्थ मोक्षहेतुथी जुदा छे, एटले के
बंधना हेतु ज छे; छतां अज्ञानीओ तेने मोक्षहेतु माने छे, ते मान्यताने सर्वथा
निषेधवामां आवी छे. अज्ञानीए मानेलो शुभकर्मरूप मोक्षहेतु आखोय निषेधवामां
आव्यो छे, एटले के शुभकर्म वडे मोक्षमार्ग जरापण थतो नथी, –एम प्रतिपादन
करवामां आव्युं छे. भले विद्वान होय के शास्त्रो भण्यो होय, पण जो शुभरागना
आश्रये किंचित पण मोक्षमार्ग थवानुं मानतो होय तो ते भगवानना मार्गथी भ्रष्ट छे,
भगवाने कहेला शास्त्रना रहस्यने ते जाणतो नथी; खरेखर ते विद्वान नथी पण मूढ छे.
अरे भाई! तुं शास्त्रमांथी शुं भण्यो? मोक्षनो पंथ तो आत्माना आश्रये होय के
रागना आश्रये? व्यवहार एटले परनो आश्रय, परना आश्रये मोक्षमार्ग केम होय?
भाई, तें परना आश्रयनी बुद्धि न छोडी ने स्वतत्त्व तरफ तारुं मुख न फेरव्युं–तो तारी
विद्वता शा कामनी? ने तारा शास्त्रभणतर शुं