Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
कामना? विद्वत्ता तो तेने कहेवाय के जेनाथी स्वाश्रय करीने पोतानुं हित सधाय.
स्वाश्रये वीतरागभाव प्रगटे ते ज शास्त्रनो उपदेश छे. आत्माना मोक्षनुं कारण
आत्माना स्वभावथी जुदुं न होय. आत्मा ज्ञानस्वभावी छे ने राग तो तेनाथी जुदी
चीज छे; ते राग वडे मोक्षमार्गनुं परिणमन थतुं नथी. पुण्यभाव पण बंधनुं ज कारण
छे, मोक्षनुं नहि.
पुण्यने क्यांक तो राखो?
–राख्युं ने!
–क्यां राख्युं?
पुरेपूरुं बंधमार्गमां राख्युं.
मोक्षमार्ग पुण्यना आश्रये नथी. मोक्षमार्ग तो ज्ञानस्वभावना ज आश्रये थाय
छे. आचार्यदेव कहे छे के अरे पंडितो! तमे जो व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग मानता हो
तो भगवानना आगममां तेम कह्युं नथी. भगवाने तो परमार्थ स्वभावना आश्रये ज
मोक्षमार्ग कह्यो छे, ने व्यवहारना आश्रयनुं फळ तो संसार ज कह्युं छे.
करवो आत्मानो मोक्ष, अने आश्रय लेवो आत्माथी विरुद्ध एवा रागनो! –
एमां विद्वत्ता नथी पण विपरीतता छे. चैतन्यभाव अने रागभाव वच्चे भेदज्ञान
करीने, चैतन्यनो आश्रय करवो ने रागनो आश्रय छोडवो–ते ज खरी विद्वत्ता छे, ने आ
एक ज मोक्षमार्ग छे, बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी. आवा ज्ञानमय मोक्षमार्गनुं तमे
आकाश अने ज्ञान
• आकाशनो अंत छे? ......ना.
• आकाश ज्ञानमां जणाय छे? .....हा.
• आकाश ‘अंतस्वभाववाळुं’ नथी पण तेनामां ‘ज्ञेयस्वभाव’
तो छे; तेथी, अंतवगरनुं होवा छतां ज्ञानमां ते अंंतवगरना
पणे (अनंतपणे) जेम छे तेम जणाय छे. केमके–
• आकाशनी अनंतता करतांय ज्ञानसामर्थ्यनी अनंतता मोटी छे.
• हे जीव! आवडा मोटा ज्ञानस्वभाववाळो तुं छो.