Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
छे. मतिश्रुतज्ञानने स्वतरफ वाळवाना पुरुषार्थरूपी जे पर्याय ते व्यवहार छे, अखंड
आत्मस्वभाव ते निश्चय छे. ज्यारे मति–श्रुतज्ञानने स्व तरफ वाळ्‌या अने आत्मानो
अनुभव कर्यो ते ज वखते आत्मा सम्यक्पणे देखाय छे–श्रद्धाय छे. आ सम्यग्दर्शन
प्रगटवा वखतनी वात करी छे.
सम्यग्दर्शन थतां शुं थाय?
सम्यग्दर्शन थतां स्वरसनो अपूर्व आनंद अनुभवाय छे. आत्मानो सहज
आनंद प्रगट थाय छे. आत्मिक–आनंदनो उछाळो आवे छे; अंतरमां आत्मशांतिनुं
वेदन थाय छे; आत्मानुं सुख अंतरमां छे ते प्रगट अनुभवमां आवे छे; आ अपूर्व
सुखनो रस्तो सम्यग्दर्शन ज छे. ‘हुं भगवान आत्मा समयसार छुं’ एम जे
निर्विकल्प शांतरस अनुभवाय छे ते ज समयसार छे अने ते ज सम्यग्दर्शन तथा
सम्यग्ज्ञान छे. अहीं तो सम्यग्दर्शन अने आत्मा बंने अभेद लीधा छे. आत्मा पोते
सम्यग्दर्शनस्वरूप छे.
वारंवार ज्ञानमां एकाग्रतानो अभ्यास करवो
सत्श्रुतना परिचयथी ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय कर्या पछी मति–
श्रुतज्ञानने ते ज्ञानस्वभाव तरफ वाळवानो प्रयत्न करवो, निर्विकल्प थवानो पुरुषार्थ
करवो. आ ज सम्यक्त्वनो मार्ग छे. आमां तो वारंवार ज्ञानमां एकाग्रतानो अभ्यास
ज करवानो छे, बहारमां कंई करवानुं न आव्युं. ज्ञानमां स्वभावनो अभ्यास करतां
करतां ज्यां एकाग्र थयो त्यां ते ज वखते सम्यग्ज्ञानरूपे आ आत्मा प्रगट थाय छे. आ
ज जन्म–मरण टाळवानो उपाय छे. एकलो जाणकस्वभाव छे तेमां बीजुं कांई करवानो
स्वभाव नथी. निर्विकल्प अनुभव माटे आवो निश्चय करवो जोईए. आ सिवाय बीजुं
माने तेने तो व्यवहारे पण आत्मानो निश्चय नथी. बहारमां बीजा लाख उपाये पण
ज्ञान न थाय, पण ज्ञानस्वभावनी पक्कडथी ज ज्ञान थाय. बधामांथी एक
ज्ञानस्वभावी आत्माने तारवे, पछी तेनुं लक्ष करी प्रगट अनुभव करवा माटे,
मतिश्रुतज्ञाननी बहार वळती पर्यायोने स्वसन्मुख करतां तत्काळ निर्विकल्प
निजस्वभावरस आनंदनो अनुभव थाय छे. अंतरमां द्रष्टि करीने परमात्मस्वरूपनुं
दर्शन जे वखते करे छे ते ज वखते आत्मा पोते सम्यग्दर्शनरूप प्रगट थाय छे; एकवार
जेने आत्मानी आवी प्रतीत थई गई छे तेने पाछळथी विकल्प आवे त्यारे पण जे
आत्मदर्शन थई गयुं छे तेनुं तो भान छे, एटले के आत्मानुभव पछी विकल्प ऊठे
तेथी सम्यग्दर्शन चाल्युं जतुं नथी. सम्यग्दर्शन ए कोई वेष नथी पण स्वानुभवरूप
परिणमेलो आत्मा ते ज सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे.