Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : ५ :
सम्यक्त्व माटेनी सरस मजानी वात
सम्यग्दर्शननो प्रयत्न समजावे छे
श्री समयसारनी १४४ मी गाथा एटले सम्यग्दर्शननो
मंत्र....मुमुक्षुने अत्यंत प्रिय एवी आ गाथा आत्मानो अनुभव
करवानी रीत बतावे छे तेनां प्रवचनोनुं दोहन अहीं
प्रश्नोत्तरशैलीथी रजु कर्युं छे, फरीफरीने तेना भावोनुं ऊंडुं मनन
मुमुक्षुजीवने चैतन्यगूफामां लई जशे.
प्रश्न:– सम्यग्दर्शन करवा माटे मुमुक्षुए पहेलां शुं करवुं?
उत्तर:– हुं ज्ञानस्वभाव छुं–एवो निश्चय करवो.
प्रश्न:– ते निर्णय कोना अवलंबने थाय?
उत्तर:– श्रुतज्ञानना अवलंबनथी ते निर्णय थाय.
आ निर्णय करनारनुं जोर क्यां छे?
आ निर्णय करनार जोके हजी सविकल्पदशामां छे परंतु तेनुं विकल्प उपर जोर
नथी, ज्ञानस्वभाव तरफ ज जोर छे.
आत्मानी प्रगट प्रसिद्धि क्यारे थाय?
आत्माना निश्चयना बळे निर्विकल्प थईने साक्षात् अनुभव करे त्यारे.
आवा अनुभव माटे मतिज्ञाने शुं कर्युं.
ते परथी पाछुं वळीने आत्मसन्मुख थयुं.
• श्रुतज्ञाने शुं कर्युं?
पहेलां ते नयपक्षना विकल्पोनी आकुळता थती तेनाथी जुदुं पडीने ते श्रुतज्ञान
पण आत्मसन्मुख थयुं; एम करवाथी निर्विकल्प अनुभूति थई, परमआनंद
सहित सम्यग्दर्शन थयुं, भगवान आत्मा प्रसिद्ध थयो; तेने धर्म थयो अने ते
मोक्षना पंथे चाल्यो.