विकल्पो, चारित्राचारमां पंचमहाव्रत वगेरेना विकल्पो, तेमज वीर्याचार अने
विकल्पो निश्चयथी आत्मानुं स्वरूप नथी पण शुद्धआत्मानी उपलब्धि न थाय त्यां
सुधी तेवा विकल्पो होय छे, ने तेनाथी विपरीत विकल्पो नथी होता, एटले
आ रीते व्यवहार पंचमहाव्रतादि अंगीकार करती वखते ज मुनि थनारने भान छे के
आ मारा आत्मानुं वास्तविकस्वरूप नथी. मुनिने शुद्धोपयोगना अभाव वखते वच्चे
उपलब्धि करुं त्यां सुधी तेने अंगीकार करुं छुं. एटले खरेखर भावना तो
शुद्धोपयोगनी ज छे, शुभ विकल्पोनी भावना नथी. जो विकल्पोथी खरेखर लाभ
प्राप्ति न थाय पण अज्ञाननी प्राप्ति थाय. जेणे पहेलेथी समस्त परभावोथी जुदुं
पोतानुं स्वरूप जाण्युं छे–अनुभव्युं छे एवा सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने मुनिदशामां केवो
मुनिपणुं तो अंदरनी शुद्ध परिणतिरूप छे.
भावना धर्मीने नथी. शुद्धपयोगवडे राग–द्धेष–मोहने हणीने ज अर्हंतोए मोक्षने साध्यो
छे; मुनिवरो पण ए ज उपायमां प्रयत्नशील छे. चोथा गुणस्थाने धर्मनी शरूआत पण
आचार्यदेव कहे छे के तेने ओळंगीने हुं शुद्धोपयोगमां लीन थाउं छुं, एकाग्रता वडे
शुद्धोपयोगी श्रमण थईने हुं साक्षात् मोक्षमार्गने साधुं छुं. जेने भवसमुद्रनो किनारो
चारित्रदशामां झूलता झूलता बीजा मोक्षार्थी जीवोने पण ते मार्ग उपदेशी रह्या छे. अहो
जीवो! आत्माना मोक्षने साधवा माटे, एटले आत्माना अतीन्द्रिय सुखने साधवा माटे,
चारित्रदशाने अंगीकार करो. आवी चारित्रदशा अंगीकार करवा माटे तैयार थयेलो मुमुक्षु
जीव कई रीते मुनि थाय छे तेनुं आ वर्णन छे.