Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
–ए रीते मुनि थवा नीकळेला ते धर्मात्मा ज्ञान–दर्शन–चारित्र–तप अने
वीर्यना व्यवहार पंचाचारने अंगीकार करे छे, –पण कई रीते अंगीकार करे छे? –के
हेयबुद्धिथी; ज्ञानाचारमां गुरुविनय वगेरेना विकल्पो, दर्शनाचारमां वात्सल्य वगेरेना
विकल्पो, चारित्राचारमां पंचमहाव्रत वगेरेना विकल्पो, तेमज वीर्याचार अने
तपाचार संबंधी शुभ विकल्पो, ते शुद्धात्माथी भिन्न छे एम तो तेणे जाण्युं छे; ते
विकल्पो निश्चयथी आत्मानुं स्वरूप नथी पण शुद्धआत्मानी उपलब्धि न थाय त्यां
सुधी तेवा विकल्पो होय छे, ने तेनाथी विपरीत विकल्पो नथी होता, एटले
व्यवहारथी तेने अंगीकार करे छे. –क्यां सुधी? के शुद्धोपयोग न थाय त्यां सुधी ज.
आ रीते व्यवहार पंचमहाव्रतादि अंगीकार करती वखते ज मुनि थनारने भान छे के
आ मारा आत्मानुं वास्तविकस्वरूप नथी. मुनिने शुद्धोपयोगना अभाव वखते वच्चे
एवा शुभभावो होय छे तेथी उपचारथी एम कह्युं के, तेना प्रसादथी शुद्धआत्मानी
उपलब्धि करुं त्यां सुधी तेने अंगीकार करुं छुं. एटले खरेखर भावना तो
शुद्धोपयोगनी ज छे, शुभ विकल्पोनी भावना नथी. जो विकल्पोथी खरेखर लाभ
मानीने तेमां ज एकत्वबुद्धि करे तो तो तेमां ज रोकाई रहे, एटले तेने शुद्धात्मानी तो
प्राप्ति न थाय पण अज्ञाननी प्राप्ति थाय. जेणे पहेलेथी समस्त परभावोथी जुदुं
पोतानुं स्वरूप जाण्युं छे–अनुभव्युं छे एवा सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने मुनिदशामां केवो
व्यवहार होय ते अहीं व्यवहार पंचाचारनुं वर्णन करीने ओळखाव्युं छे. परमार्थ
मुनिपणुं तो अंदरनी शुद्ध परिणतिरूप छे.
खरेखर आ आत्मा धर्मरूपे एटले के शुद्धोपयोगरूपे परिणमे तेे धर्मीनो मनोरथ
छे, ते ज धर्मीनी भावना छे. मोक्षने साधतां वच्चे रागनो अंश आवी जाय तेनी
भावना धर्मीने नथी. शुद्धपयोगवडे राग–द्धेष–मोहने हणीने ज अर्हंतोए मोक्षने साध्यो
छे; मुनिवरो पण ए ज उपायमां प्रयत्नशील छे. चोथा गुणस्थाने धर्मनी शरूआत पण
शुद्धोपयोगपूर्वक ज थाय छे. छठ्ठा गुणस्थाने शुभराग आवे ते पण कषायनो कण छे,
आचार्यदेव कहे छे के तेने ओळंगीने हुं शुद्धोपयोगमां लीन थाउं छुं, एकाग्रता वडे
शुद्धोपयोगी श्रमण थईने हुं साक्षात् मोक्षमार्गने साधुं छुं. जेने भवसमुद्रनो किनारो
आवी गयो छे अने सातिशय ज्ञानज्योति खीली गई छे एवा आचार्यदेव पोते आ रीते
चारित्रदशामां झूलता झूलता बीजा मोक्षार्थी जीवोने पण ते मार्ग उपदेशी रह्या छे. अहो
जीवो! आत्माना मोक्षने साधवा माटे, एटले आत्माना अतीन्द्रिय सुखने साधवा माटे,
अने भयंकर भवदुःखोथी छूटवा माटे तमे पण ज्ञानतत्त्वनो निर्णय करीने आवी
चारित्रदशाने अंगीकार करो. आवी चारित्रदशा अंगीकार करवा माटे तैयार थयेलो मुमुक्षु
जीव कई रीते मुनि थाय छे तेनुं आ वर्णन छे.