Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : ७ :
जे मुमुक्षु आत्माना ज्ञान उपरांत हवे मुनि थवा तैयार थयो छे ते स्त्री वगेरे
पासे रजा मांगे छे: पोताना आत्माने जेम देहथी भिन्न जाण्यो छे, तेम सामा
आत्माओने पण देहथी भिन्न जाण्या छे, तेथी ते आत्माने संबोधीने कहे छे के हे
रमणीना आत्मा! आ आत्माने रमाडनार तुं नथी–एम तुं निश्चयथी जाण; अमारा
चैतन्यना अतीन्द्रिय, विषयातीत सुखने अमे जाण्युं छे, ते आत्मसुखमां ज हवे अमे
रमशुं; बाह्यविषयोमां स्वप्नेय सुख भासतुं नथी. हवे तो स्वानुभूतिरूपी जे
अनादिरमणी तेमां ज रमणता करशुं, आ संसारनी रमणता छोडीने आजे ज अमे
अमारी स्वानुभूति पासे जशुं.
ए रीते पुत्रना आत्माने पण कहे छे के हे आत्मा! आ आत्मानो जन्य तुं
नथी; तारो आत्मा अनादि सत् पदार्थ छे तेने अमे उपजाव्यो नथी. –आम जाणीने तुं
आ आत्मानो मोह छोड. अमारो खरो जन्य एटले के अमारी खरी प्रजा तो अमारी
निर्मळपर्यायोनी संतति ज छे. ज्ञानज्योति अमने प्रगटी छे, अने हवे स्वानुभवमां
एकाग्रता वडे अमे अमारा
केवळज्ञानादिरूप निर्मळ पर्यायनी
संततिने प्रगट करशुं.
मुमुक्षु वैरागी ए रीते
बंधुजनोने वैराग्यभावथी संबोधन
करीने रजा मांगे छे; तेना वचनो
सांभळीने बीजा पात्र जीवो पण
वैराग्य पामे छे. भेदज्ञान वडे जेनो
आत्मा जाग्यो छे अने जेनी अंर्त–
परिणतिमां वैराग्यना धोध ऊछळ्‌या
छे ते कांई बीजाने कारणे संसारमां
रोकाता नथी; एने माता–पिता
भाई–बेन के स्त्री–पुत्रादिनी ममता
नथी एटले ए तो बधाने छोडीने
मुनि थईने केवळज्ञान साधवा माटे
वनमां जाय छे. पांजरेथी छूटेला
वनविहारी सिंह पाछा पींजरे पुराय
नहीं, तेम आत्माना ज्ञानपूर्वक जेणे
मोहपींजरुं तोडयुं एवा वनविहारी सन्तो हवे संसारना पीजरामां रहे नहीं.