हे जीवो! तमे पण मोह छोडीने रजा आपो.
तमे निश्चयथी जाणो. परज्ञेयोथी भिन्न मारा ज्ञानतत्त्वने में जाण्युं छे, अने हवे
वैराग्यथी हुं मारा आत्माने साधवा मांगुं छुं, माटे तमे मने विदाय आपो. जेने
ज्ञानज्योति प्रगटी छे एवो मारो आत्मा आजे पोताना आत्मा पासे जाय छे;
आत्मा ज पोतानो अनादि जनक छे अर्थात् पोतानी निर्मळ पर्यायरूपी प्रजानो
उत्पादक पोते छे. अमे अमारा आत्माने स्वानुभूतिथी जाण्यो छे, ने हवे अंतरमां
अनुभवेला ते मार्गे जईए छीए, हवे मुनि थईने आत्माना केवळज्ञाननिधानने
खोलशुं. हवे फरीने बीजा माता–पिता आ संसारमां नहीं करीए. अमारो आत्मा
आ संसारना कलेशथी थाक्यो छे. आ संसारथी हवे बस थाव. हवे अमे चैतन्यना
पूरा आनंदने ज अनुभवशुं. –आम विनयथी रजा लईने मोक्षमार्गने साधवा गुरु
पासे जाय छे ने मुनिपणुं अंगीकार करे छे.
वनक्रीडा करवा गयेला ने त्यां जयकुमार–सेनापतिनी दीक्षा समाचार सांभळतां ज
वैराग्य पामीने वनमांथी बारोबार आदिनाथ प्रभुना समवसरणमां जईने दीक्षा
लई लीधी. माता–पिताने पूछवा पण न रोकाया. वाह! नानी उंमरना राजकुमारो
मुनि थईने हाथमां नानकडुं कमंडळ ने नानकडी मोरपींछी लईने चैतन्यनी धूनमां
मस्त चाल्या आवता होय,–ए तो जाणे के नानकडा सिद्धभगवान!! अहा,
मुनिदशाना महिमानी शी वात! आवा मुनिनां दर्शन पण महा भाग्ये ज मळे छे.
अत्यारे अहीं तो मुनिनां दर्शन पण क्यां छे? ज्यां साचो तत्त्वनिर्णय पण न होय
त्यां मुनिदशा क्यांथी होय? तत्त्वने जाण्या वगर एम ने एम मानी ल्ये के अमे
मुनि छीए, –ए तो मोटी भ्रमणा छे; एने मुनिदशानी खबर पण नथी. मुनिदशा
ए तो परमेष्ठी पद! ईन्द्रो अने चक्रवर्तीओ पण भक्तिथी जेनो आदर करे छे ने
केवळज्ञान लेवानी जेनी तैयारी छे ए मुनिदशानी शी वात!