मोक्षमार्ग! आचार्यदेव कहे छे के अमे एवो मुनिमार्ग अनुभव्यो छे. अंतरमां जेणे
ज्ञानतत्त्वना चैतन्यनिधान देख्या होय, ज्ञानज्योति जेने प्रगटी होय, ने चैतन्यना
केवळज्ञानकपाटने खोलवाना प्रयत्नमां जेओ सतत उद्यमी होय, एवा जीवोने
चैतन्यमां लीनताथी चारित्रदशा होय छे; तेने साधुदशा कहेवाय छे. साधु एटले
मोक्षना साधक. आचार्यदेव कहे छे के आवी दशा अमने प्रगटी छे, अमारा
स्वानुभवथी अमे ते मार्ग जाण्यो छे; बीजा जे मुमुक्षुओ दुःखथी छूटवा माटे
चारित्रदशा लेवा चाहता होय तेमने चारित्रनो मार्ग देखाडनारा अमे आ रह्या.
अहा, जाणे सामे ज अत्यारे साक्षात् ऊभा होय, ने चारित्रदशा देता होय! जेने
सम्यग्दर्शन थयुं छे, ज्ञानज्योति झळकी छे अने हवे मुनि थईने चैतन्यना पूर्णानंदने
साधवा मांगे छे, कषायोना कलेशरूप दुःखोथी अत्यंतपणे छूटवा मांगे छे–ते मोक्षार्थी
जीव शुं करे छे? के पहेलां तो वैराग्यपूर्वक बंधुवर्गनी विदाय ले छे. मारो खरो
बंधुवर्ग तो ज्ञान–आनंद वगेरे अनंतगुणो छे–के जे सदाय मारी साथे ज छे.
बहारना बंधुवर्ग माता–पिता भाई–बेन सगांसंबंधी ते खरेखर अमारां नथी,
एनाथी भिन्न अमारा चैतन्यस्वरूपने अमे जाण्युं छे, ने हवे निर्मोह थईने
चैतन्यनी शुद्धताने साधवा माटे जंगलमां जईशुं ने मुनिदशा धारण करीशुं.
छीए, हवे अमारुं स्थान वनमां छे. वनना सिंह अने वाघनी वच्चे अमे अमारा
चैतन्यने साधशुं. चैतन्यनो अनुभव तो थयो छे, ने हवे तेनी पूर्णताने साधवा माटे
मोक्षार्थी जीव आ रीते मुनि थाय छे.
पण तमारो नथी–एम निश्चयथी तमे जाणो. एक ज्ञानस्वभाव ज अमारो छे,
जगतमां बीजुं कांई अमारुं नथी, ने अमे बीजा कोईना नथी–एम अमे जाण्युं छे,
ज्ञानज्योति अमने प्रगटी छे. –अमारो आत्मा ज अमारो खरो बंधु छे, तेथी
अमारा अनादिना बंधु पासे हवे अमे जईए छीए, माटे हवे तमारी विदाय लईए
छीए.