स्व–पर ज्ञेयतत्त्वोनुं स्वरूप
बतावीने आचार्यदेव कहे छे के
अमारो आत्मा आ संसारना
दुःखोथी मुक्त थवानो
अभिलाषी हतो; तेथी अमे
आवा ज्ञानतत्त्वनो अने
ज्ञेयतत्त्वनो यथार्थ निर्णय
कर्यो छे, उपशमना लक्षे अमे
साचो तत्त्वनिर्णय कर्यो छे,
पंचपरमेष्ठी भगवंतोने
भावनमस्कार करीने
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान
उपरांत शुद्धोपयोग वडे
वीतरागी साम्यभावरूप
मुनिदशा प्रगट करी छे. अमे
अमारा अनुभवथी कहीए
छीए के हे मुमुक्षु जीवो! हे
जेनो आत्मा दुःखथी छूटवा चाहतो होय ते अमारी जेम सम्यग्दर्शनज्ञानपूर्वक
चारित्रदशाने अंगीकार करो. शुद्धोपयोगरूप चारित्रदशाने अंगीकार करवानो जे
यथानुभूतमार्ग तेना प्रणेता अमे आ रह्या; अमे जाते अनुभवेलो चारित्रनो मार्ग
तमने बतावीए छीए. तेने हे मोक्षार्थी जीवो! तमे अंगीकार करो.