Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : ३ :
तें कदी नथी कर्यो; –एवो अनुभव करवानो आ अवसर छे, ने एवो अनुभव करवानो
ज जिनागमनो उपदेश छे. आवो अनुभव करवो ते ज अपूर्व चीज छे.
धर्मी जीव ज्ञानचेतनारूप थईने आनंदरूप कार्यने तन्मयपणे करे छे.
अज्ञानदशामां राग साथे तन्मयपणुं मानतो, हवे भेदज्ञान थतां रागथी जुदो थयो ने
आनंद साथे तन्मय थईने परिणम्यो; एटले रागादि साथे कर्ताकर्मपणानो मिथ्याभाव
छूटयो, ने ज्ञानचेतनारूप सम्यक्भाव प्रगटयो. पोतानी चैतन्यशक्तिने वारंवार
स्पर्शतो–अनुभवमां लेतो धर्मी जीव आस्रवोने जीती ल्ये छे. –आ अपूर्व मंगळ छे.
तेणे परमागमने पोताना अंतरमां कोतरी लीधा; भावश्रुतज्ञान तेना आत्मामां
कोतराई गयुं; अंदरथी सहज शांतदशा प्रगटी. रागनी मंदतारूप कृत्रिम शांति तो
अनंतवार करी, पण रागथी पार सहज चिदानंद स्वभावना अनुभवरूप शांति कदी
प्रगट करी न हती; कषायनी मंदतारूप शांतिने घणा अज्ञानी जीवो आत्मानो अनुभव
मानी ल्ये छे;– मंदकषायना वेदनमां एकाकार थईने, जाणे के निर्विकल्प अनुभवमां होय
एम कल्पना करी ल्ये छे, ते तो भ्रमणा छे. ज्ञानी धर्मात्मा भेदज्ञानना बळे समस्त
रागभावोथी पार एवा पोताना चिदानंदस्वरूपना अनुभव वडे सहज आत्मिक
शांतिनुं वेदन करे छे, आवा वेदनरूप भावश्रुत ते परमागमनी प्रतिष्ठा छे; परमागममां
एनो ज उपदेश छे.
परमागमनुं हार्द शुद्ध आत्मानो अनुभव छे. धर्मी जीव एवा अनुभव वडे
आस्रवने जीतीने अल्प काळमां केवळज्ञान प्रगटावे छे.
जिनागमना फळरूप परमआनंदमय केवळज्ञान जयवंत वर्तो.
आ दिवसे बपोरना प्रवचनमां पण गुरुदेव वारंवार
अतिशय प्रमोद वडे केवळज्ञाननो साद पाडता हता.....तेओ कहेता
हता के अत्यंत नजीक केवळज्ञान छे तेने अमे मतिश्रुतज्ञानना बळे
बोलावीए छीए. अल्पकाळमां केवळज्ञान थवानुं छे ते हवे पाछुं
फरे नहीं. भगवानना ज्ञानमां पण एम ज आव्युं छे. आम धर्मी
जीव स्वसन्मुख थईने मतिश्रुतज्ञानना बळे केवळज्ञानने बोलावे
छे; हे केवळज्ञान! तारी प्रतीत करी छे.....हवे तुं शीघ्र आव!