Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ८ A : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
दीक्षा माटे तैयार थयेलो ते मुमुक्षु–धर्मात्मा कुटुंबादिने छोडीने पछी आचार्य
पासे जईने दीक्षा मांगे छे. शुद्धात्मानी उपलब्धिने साधनारा महा गुणवान आचार्य
पासे जईने, वंदन करीने विनयथी प्रार्थना करे छे के हे प्रभो! आ संसारनां दुःखोथी
छूटवा अने शुद्धआत्मानी प्राप्ति करवा हुं आपना आश्रये आव्यो छुं. माटे हे स्वामी!
शुद्धात्मानी उपलब्धिरूप सिद्धिथी मने अनुगृहीत करो.










त्यारे श्री आचार्य भगवान तेनी पात्रता जोईने तेना उपर अनुग्रह करे छे के;
‘ले, आ तने शुद्धात्मतत्त्वनी उपलब्धिरूप सिद्धि!’ आ रीते आचार्यदेव अनुग्रहपूर्वक
ते शिष्यने मुनिदीक्षा आपे छे. अहा, जाणे शुद्धात्मा ज आप्यो! परम अनुग्रह करीने
तेने मुनिदशा आपी.
आ रीते श्रीगुरु पासे मुनिदीक्षा लईने पछी शुं करे छे? –
‘हुं परनो नथी, पर मारां नथी; आ लोकमां मारुं
कांई पण नथी, परनी साथे मारे कांई पण संबंध नथी, हुं
तो शुद्धज्ञानमात्र ज छुं’ –आवा निश्चयवाळो अने जितेन्द्रिय
वर्ततो थको ते मोक्षार्थीजीव यथाजात सहजरूपने धारण करे
छे......एटले के ध्यान वडे आत्मानुं जेवुं सहज शुद्धस्वरूप छे
तेवुं प्रगट करे छे. आ रीते अंतरना ध्यानमां शुद्धोपयोग
प्रगट करीने, मोक्षनी साक्षात् साधक एवी मुनिदशा प्रगट
करे छे.
नमस्कार हो ते मुनिभगवंतना चरणमां.