मोक्षमार्गमां ज्ञानीने शुभराग थाय ते पण अपराध छे, ते कांई गुण नथी. गुण तो
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे, ते रत्नत्रय ज निर्वाणनो हेतु छे. पुरुषार्थसिद्धिउपायमां
गाथा २२०मां कहे छे के–
आस्रवति यत्तु पुण्यं शुभोपयोगोऽपराधः।।
शुभोपयोगनो अपराध छे; अर्थात् शुभोपयोग ज पुण्यबंधनुं कारण छे अने ते
अपराध छे; रत्नत्रयरूप वीतरागधर्म ते कांई पुण्यबंधनुं कारण नथी.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना जेटला अंशो छे तेटला अंशे बंधन नथी; जे रागांशो
छे ते ज बंधनुं कारण छे–ए सिद्धांत गा. २१२–२१३–२१४ मां स्पष्टपणे
अमृतचन्द्राचार्ये समजाव्यो छे.
नथी, ते तो मोक्षनुं ज कारण थाय छे. अरे, तारी चीज मोक्षस्वरूप सर्वज्ञस्वभावथी
भरपूर तेने तुं संभाळ. सर्व गुणसम्पन्न आत्मा छे; सर्वज्ञेयोने साक्षात् सर्वप्रकारे
जाणवानी तेनी ताकात छे. पण पोते पोताने आवो सर्वज्ञस्वभावी न मानतां, पुण्य–
पापरूप बंधभावरूपे ज पोताने माने छे ते अंदरना साक्षात् भगवानथी दूर थईने
परभावमां जाय छे. अहो, सर्वज्ञस्वभावी आत्मा अंदर बिराजे छे, तेमां नजर करतां
बंधभावोथी रहित मुक्तस्वरूप आत्मा अनुभवाय छे. आवो अनुभव ते अपूर्व
अलौकिक वस्तु छे.
भगवान तेमां नजर करीने अनुभव करवो ते मोक्षनुं कारण छे. ज्ञानी पोताना
चैतन्यस्वभावने अनुभवता थका भगवाननी नजीक वर्ते छे. जे पोताना अपराधथी
भगवानने भूल्यो ते भगवानथी दूर थयो, पुण्य–पापने पोतानुं मानीने अज्ञानमां
अटकेला जीवो भगवानने भूली जाय छे; एटले ते तो भगवानथी दूर छे. ने