Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : १५ :
ज्ञानी पोताना सर्वज्ञस्वभावने अनुभवता थका समस्त परभावोथी दूर एटले जुदा
वर्ते छे, ने अंदरमां पोताना सर्वज्ञस्वभावी भगवाननी नजीक वर्ते छे. अहो, सर्व
प्रकारे संपूर्ण मारो आत्मा, जगतने जाणवाना सामर्थ्यवाळो–एवा अनुभवमां धर्मी
जीवने जगतनी कोई अभिलाषा नथी के शुभरागनोय रस नथी; केमके मारो
सर्वज्ञस्वभाव कांई संयोगथी टक्यो नथी. आवा स्वभावने न देखवो ने रागने
निजकार्यपणे देखवो ते तो सर्वज्ञस्वभावनो अपराध छे, विराधना छे. सर्वज्ञस्वभावनी
आराधना रागथी पार छे. शुभरागमां अज्ञानीने अपराधपणुं देखातुं नथी, केमके राग
वगरनो निरपराध अतीन्द्रिय सर्वज्ञस्वभाव तेणे देख्यो नथी.
रागादि भावो बंधस्वरूप छे ने ज्ञानस्वभाव मुक्तस्वरूप छे. ज्ञानस्वभाव ज
सारो छे, तेने बदले बंधभावने (शुभरागने–पुण्यने) सारा तरीके अनुभववो ते
मिथ्यात्व छे. शुभराग पोते मिथ्यात्व नथी पण तेने हितरूपे मानवो ते मिथ्यात्व छे.
धर्मी जीव ज्ञानस्वभावने राग वगरनो, कर्म वगरनो अनुभवे छे. ते ज मोक्षमार्ग छे,
ते ज सारो छे.
राग बंधनुं कारण छे, अने तेनाथी पार सर्वज्ञस्वभावी आत्मा हुं छुं एम धर्मी
अनुभवे छे, ते मोक्षनुं कारण छे. अहा, सर्वज्ञस्वभाव प्रतीतमां लेतां, लक्षमां लेतां,
अनुभवमां लेतां, समस्त पुण्य–पापथी पर एवा अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय छे.
ईन्द्रियो वडे के पुण्यना विकल्पो वडे एनुं लक्ष न थई शके. एनी पोतानी जातिनुं
अतीन्द्रिय ज्ञान अंतर्मुख थईने सर्वज्ञस्वभावने ओळखी शके छे. सर्वज्ञस्वभावने
ओळखनारुं ज्ञान रागथी पार छे. पुण्यने मोक्षमार्ग मानीने तेना कर्तृत्वमां अटकतां
सर्वज्ञस्वभाव भूलाई जाय छे. माटे ज्ञानथी ते पुण्य–पाप भिन्न छे. आवुं भेदज्ञान
करीने जे सर्वज्ञस्वभावने अनुभवे छे ते साधक थईने अल्पकाळमां सिद्धपदने साधे छे.
जय हो सर्वज्ञस्वभावने अनुभवनारा साधक सन्तोनो.
आखी दुनियाना अंधारां भेगा थाय तोपण नानकडा
दीवाने ओलवी शकता नथी. तेम आखी दुनियानी प्रतिकूळता
भेगी थाय तोपण धर्मात्मानी ज्ञानज्योतने बुझावी शकती नथी.