Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
पं. बुधजनरचित छहढाळा * (छठ्ठी ढाळ)
आ पहेलांनी पांच ढाळ अनुक्रमे आत्मधर्म अंक ३०४, ३०६,
३०८A, ३०९ अने ३१० मां अर्थ सहित आपी गया छीए. आ
छठ्ठी ढाळमां मुनिदशा तथा केवळज्ञान अने मोक्ष पामवानुं वर्णन
कर्युं छे, अने आवो मनुष्यअवतार पामीने करोडो उपाये पण
जिनधर्मनी उपासना करवानी प्रेरणा आपी छे.
(रोला छंद)
अथिर ध्याय पर्याय,
भोगसे होय उदासी,
नित्य निरंजन ज्योति,
आत्मा घटमें भासी;
सुत–दारादि बुलाय,
सर्वसे मोह निवारा,
त्याग नग्न धन धाम,
वास वन बीच विचारा.ाा१ाा
भूषण वसन उतार,
नग्न हो आतम चीह्ना,
गुरु तट दीक्षा धार,
शीश कचलुंच जु किना;
त्रस–थावरका घात त्याग,
मन–वच–तन–लीना,
झूठ वच परिहार,
ग्रहे नहीं जल बिन दीना.ाा२ाा
चेतन–जड त्रिय भोगत
जो भवभव दुःखकारा;
अहिं–कंचुकी ज्यों तजत,
चित्तसे परिग्रह डारा;
(अर्थ)
(१) सम्यग्द्रष्टिने नित्य निरंजन
चैतन्यज्योति स्वरूप आत्मा पोताना
अंतरमां भास्यो छे; ते देहपर्यायने
अस्थिर समजीने संसार–भोगोथी
उदासीन थाय छे; स्त्री–पुत्रादिने
संबोधन करीने ते बधा प्रत्येनो मोह
छोडे छे अने नगर–धन–धाम वगेरे
परिग्रह छोडीने वन वच्चे वास करवानुं
विचारे छे.
(२) पछी श्री गुरु पासे जई समस्त
आभूषण अने वस्त्र उतारी नग्न थई
दीक्षा धारण करी केशलोच करी,
आत्मध्यानमां मग्न थाय छे. समस्त
त्रस–स्थावर जीवोनी हिंसानो मन–
वचन–कायाथी त्याग करे छे,
मिथ्यावचननो पण त्याग करे छे, अने
वगर दीधेलुं पाणी पण लेता नथी.
(३) वळी चेतन के जड (चितरेली)
स्त्री–के जेनो उपभोग भवोभवमां
दुःखकारी छे ते सर्पनी कांचळी जेम
छोडयो, तेमज चित्तमां निर्मम थईने
परिग्रह पण छोडयो; मन–