Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
ऐसी भावना भाय,
ऐसे जो कार्य करे है,
सो ऐसे ही होय,
दुष्ट कर्मोंको हरे हैं.ाा ६ाा
जिनके उर विश्वास
वचन जिनशासन नाहीं,
ते भोगातुर होय,
सहैं दुःख नर्कों मांही;
सुख दुःख पूर्व विपाक,
अरे मत कंपे जीया,
कठिन कठिन से मित्र!
जन्म मानुषका लिया.ाा ७ाा
ताहि वृथा मत खोय,
जोय आपा पर भाई,
गयें न मिलती फेर,
समुद्र में डूबी राई;
भला नर्क का वास,
सहे जो सम्यक् पाता,
बुरे बने जो देव,
नृपति मिथ्या मदमाता.ाा ८ाा
ना खर्चे धन होय,
नहीं काहुं से लडना,
नहीं दीनता होय,
नहीं घरके परिहरना
सम्यक् सहजस्वभाव,
आपका अनुभव करना,
या बिन जप–तप व्यर्थ,
कष्ट के मांही पडना.ाा ९ाा
भावीने आवुं (श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनुं)
कार्य करे छे तेओ पण आवा सिद्धपदने
पामे छे ने दुष्टकर्मोने नष्ट करे छे.
(७–८) जेना अंतरमां
जिनशासनना वचननो, एटले के
भगवानना उपदेशनो विश्वास नथी, ते
जीव विषयभोगोमां मग्न थईने
नरकोमां दुःख भोगवे छे. संसारमां
सुख–दुःख तो पूर्वकर्मना विपाक
अनुसार थाय छे, –अरे जीव! तेनाथी
तुं डर मा! उदयमां जे आव्युं होय तेने
सहन कर; हे मित्र! घणी घणी
कठिनताथी आ मनुष्यजन्म मळ्‌यो छे.
माटे तेने तुं व्यर्थ मत गुमाव. हे भाई!
आ नर भवमां तुं स्व–परनी
ओळखाण कर; केमके जेम समुद्रमां
डुबेलो राईनो दाणो फरी मळवो मुश्केल
छे तेम आ मनुष्यजन्म वीती गया
पछी फरी मळवो मुश्केल छे. सम्यक्त्वनी
प्राप्ति सहित तो नरकवास पण भलो
छे; परंतु सम्यक्त्वहीन एवा
मिथ्यात्वथी मदमातो जीव देव के राजा
थाय तो पण ते बूरुं छे.
(९) सम्यक्त्व ते आत्मानो
सहजस्वभाव छे; ते नथी तो धन
खर्चवाथी थतुं; तेमां नथी कोई साथे
लडवानुं, नथी कोई पासे दीनता
करवानुं, के नथी घरबार छोडवानुं;
सहजस्वभावरूप आत्मानो अनुभव
करवो–ते सम्यक्त्व छे. तेना वगरनां
जप–तप ते व्यर्थ छे, कष्टमां पडवानुं छे.