अरे मत कंपे जीया,
कठिन कठिन से मित्र!
कार्य करे छे तेओ पण आवा सिद्धपदने
भगवानना उपदेशनो विश्वास नथी, ते
जीव विषयभोगोमां मग्न थईने
नरकोमां दुःख भोगवे छे. संसारमां
सुख–दुःख तो पूर्वकर्मना विपाक
अनुसार थाय छे, –अरे जीव! तेनाथी
तुं डर मा! उदयमां जे आव्युं होय तेने
सहन कर; हे मित्र! घणी घणी
कठिनताथी आ मनुष्यजन्म मळ्यो छे.
माटे तेने तुं व्यर्थ मत गुमाव. हे भाई!
आ नर भवमां तुं स्व–परनी
ओळखाण कर; केमके जेम समुद्रमां
डुबेलो राईनो दाणो फरी मळवो मुश्केल
छे तेम आ मनुष्यजन्म वीती गया
पछी फरी मळवो मुश्केल छे. सम्यक्त्वनी
प्राप्ति सहित तो नरकवास पण भलो
छे; परंतु सम्यक्त्वहीन एवा
मिथ्यात्वथी मदमातो जीव देव के राजा
(९) सम्यक्त्व ते आत्मानो
सहजस्वभाव छे; ते नथी तो धन
खर्चवाथी थतुं; तेमां नथी कोई साथे
लडवानुं, नथी कोई पासे दीनता
करवानुं, के नथी घरबार छोडवानुं;
सहजस्वभावरूप आत्मानो अनुभव
करवो–ते सम्यक्त्व छे. तेना वगरनां