: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : १९ :
कोटि बातकी बात अरे,
बुधजन उर धरना,
मन–वचन–तन शुचि होय,
ग्रहो जिनवृषका शरणा;
ठारहसौ पंचास अधिक,
नव संवत जानौ,
तीज शुक्ल वैशाख,
ढाल षट् शुभ उपमानौ.ाा१०ाा
(१०) ग्रंथनी पूर्णता करतां पं. बुधजन
छेल्ला श्लोकमां कहे छे के अरे
बुधजनो! करोडो वातना साररूप आ
वात तमे अंतरमां धारण करजो, मन–
वचन–कायानी पवित्रतापूर्वक
जिनधर्मनुं शरण ग्रहण करो.
शुभउपमावाळी आ छहढाळानी रचना
सं. १८प९ ना वैशाख सुद त्रीजे
समाप्त थई.
(पं. बुधजन रचित आ छहढाळा अर्थसहित प्रथम सं. १९पप मां छपाई हती;
तेना उपरथी आ सं. २०२प मां फरीथी अर्थसहित प्रगट थई छे. ते भव्य जीवोने स्व–
परनुं भेदज्ञान करावीने आत्मसुखनी प्राप्ति करावो. –(ब्र –हरिलाल जैन)
महाबलराजाना जन्मदिवसे
तेना स्वयंबुद्धमंत्री तेने जैनधर्मनो
उपदेश आपतां कहे छे के हे राजन्! आ
राजलक्ष्मी वगेरे वैभव तो केवळ
पूर्वपुण्यनुं फळ छे; आत्माना हितने
माटे तमे जैनधर्मनुं सेवन करो दशामा
भवे तमे तीर्थंकर थवाना छो.
त्यारपछीना त्रीजा भवे ते मंत्री
प्रीतिकरमुनि थया छे अने भोगभूमिमां
आवीने ऋषभदेवना आत्माने कहे छे के
हे राजा! पूर्वभवना संस्कारवश अमे
तमने सम्यक्त्व आपवा अहीं आव्या
छीए..... आजे ज तमे सम्यग्दर्शननुं
ग्रहण करो. सम्यक्त्वनी प्राप्ति माटेनो
आ अवसर छे. अने
छए जीवो पण तत्क्षणे ज
सम्यक्त्व पामे छे.