: २० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
गतांकमां पूछेल दश जीवोनी ओळखाण
१. एक जीवना मोढामां अमृत छे, छतां ते दुःखी छे–ते कोण? (मिथ्याद्रष्टि देव)
२. एक जीव कदी खाता नथी छतां सदाय सुखे जीवे छे–ते कोण? (सिद्धभगवान)
३. एक जीव सम्यग्द्रष्टि छे, पण ते नथी स्वर्गमां, नथी मनुष्यमां, नथी तिर्यंचमां
के नथी नरकमां, –तो ते क्यां हशे? ........ (मोक्षमां)
४. जंगलमां जेनो जन्म, अंजना जेनी माता, ते मोक्षगामी महात्मा श्री हनुमान.
प. महावीरप्रभुना सौथी मोटा शिष्य–जे ब्राह्मण हता ने मोक्ष पाम्या ते
(गौतमस्वामी)
६. जिनदीक्षा लेनारा छेल्ला मुगटबंधी राजा, जेणे भद्रबाहुस्वामी पासे दीक्षा
लीधी, ते राजा चंद्रगुप्त; श्रवणबेलगोलामां चंद्रगिरिनी गुफामां ते रहेता हता.
७. एक जीव वीतराग छे, तेनुं आयुष्य पूरुं थयुं छतां ते मोक्ष न पाम्यो, ते
अगियारमा गुणस्थानवाळो जीव; ते वीतराग छे, अने मरीने सर्वार्थसिद्धिमां
ज जाय छे.
८. एक मनुष्य एवा–के जे कदी खाय नहीं, पीए नहीं, छतां लाखो वर्ष जीवे–ते
अरिहंत देव.
९. एक मनुष्य पासे राती पाई पण नथी छतां जे गरीब नथी, ते दिगंबर
मुनिराज.
१०. कुंदकुंदस्वामी, जंबुस्वामी, अकलंकस्वामी, मरुदेवी, –आमांथी ते भवे मोक्ष
पाम्युं ते कोण? (जंबुस्वामी मोक्ष पाम्या; बीजा त्रण स्वर्गमां गया.)
आत्मा खोराक खाय तो मरी जाय
चेतनस्वरूप आत्मा खोराक खाधा वगर ज जीवे छे; जो खाय तो मरी जाय;
केमके जड खोराकने आत्मा खाय तो आत्मा जड थई जाय, एटले मरी जाय. जो जड
खोराकनो पोतामां प्रवेश करावे तो चेतनपणे आत्मानुं अस्तित्व ज न रहे. जड खोराक
वगर ज तेनाथी भिन्न अस्तित्वपणे आत्मा जीवे छे.
जुओ तो खरा, द्रष्टिनो फेर!
अज्ञानी कहे छे के आत्मा खोराक वगर जीवी न शके.
ज्ञानी कहे छे के आत्मा खोराक खाय तो मरी जाय.
भाई! तुं चेतन, तारे तारुं चैतन्यजीवन जीववा माटे जड खोराकनी ओशीयाळ
क्यां छे? शरीर पण ज्यां तारामां नथी त्यां खोराक केवो? अमूर्त आत्मामां मूर्त पदार्थ
प्रवेशी शके नही. (वीतरागविज्ञान भाग बीजामांथी)