Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : २१ :
वितरागविज्ञान–प्रश्नोतरी
वीतरागविज्ञान भाग १ एटले के छहढाळानां प्रथम अध्यायनां
प्रवचनो, तेमांथी दोहन करीने २०० प्रश्न–उत्तर आत्मधर्म अंक ३०४ तथा
३०प मां आप्या हता. टूंकी भाषामां ने सुगम शैलीमां आ प्रश्नोत्तर सौने
गम्या छे. ते ज प्रमाणे वीतरागविज्ञानना बीजा भागमांथी पण २४०
प्रश्नोत्तर अहीं आपवामां आवे छे जेमांथी १०० प्रश्नोत्तर गतांकमां आप्या
हता.
आत्माना सर्वज्ञपदनी विभूति
जगतमां उत्कृष्ट छे.
३०४. छ खंडनी विभूतिनो मोह क्षणमां
केम छूटे?
चैतन्यमय स्वभावनी प्रीति करे तो.
३०प. जीवनुं निजघर क्युं? ने परघर
कयुं?
चैतन्यमय आनंदधाम ते निजघर; राग
अने शरीर ते परघर.
३०६. कई बे वात एकसाथे न बनी शके?
आत्माने ज्ञानरूप ओळखे अने वळी
परने पोतानुं माने–ए बे विरुद्ध वात
एक साथे बनी शके नहीं.
३०७. आत्मानी शोभा शेनाथी छे?
सम्यक्त्वरूपी मुगट अने चारित्ररूपी
हारवडे आत्मा शोभे छे; शरीरने
शणगारवाथी आत्मा शोभतो नथी.
आत्मानुं भान भूलीने परनुं
अभिमान लाभ करे छे ते.
३१०. जैनपरंपरामां जन्म्यो तेनो खरो
लाभ क्यारे?
जीव–अजीवनुं भेदज्ञान करीने साचो
जैन बने त्यारे.
३११. भगवान कोने जैन नथी कहेता?
जीव–अजीवनी भिन्नतानुं जेने भान
नथी तेने.
३१२. आत्मा जडनो कर्ता थाय तो शुं
थाय?
तो आत्मा जड थई जाय.