: २२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
३१३. जडनो कर्ता कोण होय?
जे जड होय ते.
३१४. अज्ञान दशामां शुं हतुं?
अपनेको आप भूलके हैरान हो गया।
३१प. साचुं ज्ञान थतां शुं थयुं?
अपने को आप जानके आनंदी होय
गया।
३१६. जीव अने शरीर वच्चे शुं छे?
अत्यंत अभाव.
३१७. आस्रवने ओळखवामां अज्ञानी शुं
भूल करे छे?
रागादिक दुःख देनारा होवा छतां तेने
सुखरूप समजीने सेवे छे.
३१८. मरणनो भय क्यारे मटे?
अविनाशी चैतन्यद्रव्यने ज पोतानुं
समजे त्यारे.
३१९. सौथी पहेलां शुं शीखवुं?
‘हुं जीव छुं’ शरीर हुं नथी. –एम शीखवुं.
३२०. खोराक वगर आत्मा जीवे?
हा; जो खाय तो मरी जाय; केमके जड
खोराकने आत्मा खाय तो आत्मा जड
थई जाय, एटले मरी जाय.
३२१. तो आत्मा शेनाथी जीवे छे?
आत्मा पोताना चेतनभावथी ज सदा
जीवे छे.
३२२. देह आवे ने जाय त्यां आत्मा शुं करे?
देह आवे ने जाय तेने आत्मा जाणे, पण
पोते देहरूप थाय नहि.
३२३. देहथी जुदो आत्मा केम देखातो नथी?
देहबुद्धि घूंटाई गई छे तेथी.
३२४. देहथी जुदो आत्मा क्यारे देखाय?
बंनेना भिन्न भिन्न लक्षणने ओळखे त्यारे.
३२प. आत्मा अने शरीर–ए बंने कदी
एक थाय?
ना; एकपणुं पामे नहीं, त्रणेकाळ
द्वयभाव.
३२६. अत्यारे आत्मा ने शरीर जुदा के भेगा?
जुदा; आत्मा चेतन ने शरीर जड.
३२७. धर्मीनी ऋद्धि केवी छे?
धर्मी जाणे छे के आ बहारनी ऋद्धि
अमारी नहि, अनंत गुणसम्पन्न
चैतन्यऋद्धि ते ज अमारी ऋद्धि छे.
३२८. आत्माने अवयवो होय?
हा; आत्माने ज्ञान–दर्शन–सुख वगेरे
अनंत अवयवो छे.
३२९. शुभ ने अशुभ बंने भावो केवा छे?
बंने अनात्मभाव छे, बनेमां दुःख छे.
३३०. पुण्यफळमां जे सुख माने तेने शुं
थाय छे?
ते मोहनी पुष्टिथी संसारमां रखडे छे
ने दुःखी थाय छे.
३३१. शुभरागथी स्वर्ग तो मळे छे–छतां
तेमां दुःख?
हा; स्वर्ग मळवाथी कांई आत्माने सुख
नथी मळी जतुं. स्वर्गना पदार्थो भोगववा
ते पण आकुळता ने दुःख ज छे.
३३२. तो सुख शेमां छे?
शुभ–अशुभ बंनेथी पार चैतन्य
भावनुं वेदन ते ज सुख छे.
३३३. आत्मानुं निजरूप केवुं छे?
निजरूप तो देह अने राग बंनेथी पार,
चेतनरूप छे.