Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : २३ :
३३४. रागादि भावो केवा छे?
ते ज्ञान वगरना छे; आत्मानुं निजरूप
ते नथी.
३३प. पाप तो मोक्षनुं कारण नथी, –पण पुण्य?
पुण्य पण मोक्षनुं कारण नथी, बंधनुं ज
कारण छे.
३३६. रागमां मजा छे?
ना; राग तो आकुळतानी भठ्ठी छे, तेमां
शांति नथी.
३३७. चेतन्यना आनंदनी साची मीठासने
अज्ञानी केम भूली जाय छे?
केमके तेने पुण्यमां मीठास लागे छे तेथी.
३३८. मुमुक्षु जीवे शेमां लाग्या रहेवुं?
वीतरागविज्ञानमां लाग्या रहेवुं, पुण्य–
पापमां नहीं.
३३९. वीतरागी देव–गुरु–शास्त्र तरफनो
राग केवो छे?
ते पुण्यबंधननुं कारण छे, मोक्षनुं नहि.
३४०. राग राखीने केवळज्ञान के मोक्ष
पमाय?
ना; रागने सर्वथा छोडीने ज
केवळज्ञानादि पमाय.
३४१. शुं अत्यारथी ज रागने छोडवा जेवो
मानवो?
हा; अत्यारथी छोडवा जेवो मानवो नहीं
तो छोडशे क्यांथी?
३४२. शुभरागने मोक्षनुं कारण मानवाथी
शुं थाय?
मोक्ष तो न थाय पण मिथ्यात्व थाय.
३४३. शुं धर्मीने शुभराग न थाय?
थाय; पण तेने ते मोक्षनुं कारण न माने.
३४४. बंधन शुं? मुक्ति शुं?
उपयोगनुं रागमां जोडाण ते बंधन;
उपयोगनुं शुद्धआत्मामां जोडाण ते मुक्ति.
३४प. रागद्वेष रहित कई रीते थवाय?
उपयोगने अंतरमां शुद्धात्मामांएकाग्र
करवाथी.
३४६. संतो केवो हितोपदेश आपे छे?
रागनुं सेवन छोड ने तारा
चैतन्यस्वरूपनुं सेवन कर.
३४७. अज्ञानी मोटी भूल शुं करे छे?
आत्माने हितनां कारण एवा ज्ञान–
वैराग्यने ते दुःखदायक माने छे.
३४८. अज्ञानी बीजी भूल शुं करे छे?
शुभराग दुःखदायक होवां छतां तेने ते
सारो मानीने सेवे छे.
३४९. मोक्षभाव कया? ने बंधभाव क्या?
ज्ञान–वैराग्य ते मोक्षभाव; अज्ञान ने
शुभ–अशुभ ते बंधभाव.
३प०. चारित्रमां कष्ट छे?
ना; चारित्रमां महान आनंद छे; ते
जगत्पूज्य छे.
३प१. चारित्र शेमां छे?
चारित्र रागमां के देहमां नथी; चेतनमां
रमणता ते चारित्र छे.
३प२. आठे कर्मो विषवृक्ष छे तो
अमृतवृक्ष कयुं?
आत्मा अमृतनुं झाड छे, तेना
अनुभवमां आनंद छे?
३प३. जेने पुण्यनी रुचि छे तेने शेनी
रुचि छे?
तेने जडनी रुचि छे, तेने आत्मानी
रुचि नथी.