: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : २५ :
• फत्तेपुरथी ललिताबेन पूछे छे के–
केवळी अने श्रुतकेवळीमां शुं तफावत? ‘केवळ’ एवा शुद्ध आत्माने जाणवानी
अपेक्षाए बंने सरखा कह्या छे; पण केवळीभगवानना ज्ञान करतां श्रुतकेवळीनुं
ज्ञान अनंतमा भागनुं छे. श्रुतकेवळी एटले श्रुतमां पूरा; अने केवळीज्ञानी तो
सर्वज्ञ छे. श्रुतकेवळी ते छद्मस्थ–मुनिराज छे, ने केवळीभगवान तो अरिहंत के
सिद्ध छे.
• अविभागप्रतिच्छेद एटले शुं?
कोई पण गुणनी शक्तिनुं माप करवा माटेनो नानामां नानो अंश (जेना
विभाग न थई शके एवो छेल्लो भाग) तेने अविभागप्रतिच्छेद कहेवाय.
जेमके कोई पण जीवनुं ज्ञान केटलुं? के अनंतानंत अविभागप्रतिच्छेद थाय
एटलुं.
• अमदावादथी भाईश्री मणिलाल उजमशी लखे छे के आत्मधर्मना दरेक अंक
वंचाय छे, घणुंघणुं अगमनिगम मळे छे. पू. गुरुदेवनो वर्तमान जगत माटे
परम उपकार छे.
• प्रश्न:– बे हजार वर्ष पहेलां थई गयेला कुंदकुंदभगवाननो फोटो अत्यारे मळे छे
ते कई रीते?
• उत्तर:– ए कांई एमनो मूळ फोटो नथी, परंतु ए तो भावभासन अनुसार
तैयार करावेलुं चित्र छे. जेम आपणे महावीर भगवान वगेरेनुं कल्पित चित्र
अत्यारे करीए छीए तेम तेनुं समजवुं.
• मरूदेवी मातानो जीव अत्यारे क्यां हशे?
मोक्षमां, तीर्थंकर भगवानना माताजी एकावतारी होय छे; स्त्रीनो अवतार
होवाथी ते ज भवे तेओ मोक्ष नथी पामता; पण त्यांथी स्वर्गे जई, बीजा भवे
मोक्ष पामे छे. ते मुजब मरूदेवीनो आत्मा स्वर्गनो एक अवतार करीने पछी
मनुष्य थई मुनि थई मोक्ष पाम्यो. तेमना मोक्षगमन पछी केटलाय वर्षो बाद
(असंख्य वर्षो बाद) भरतक्षेत्रमां बीजा तीर्थंकर (अजितनाथ) थया.