Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : २९ :
स्वज्ञेयने जाणनारा ज्ञानमां सहेजे स्वभावनी मुख्यता ने रागनी गौणता (एटले
निश्चयनी मुख्यता ने व्यवहारनी गौणता) थई जाय छे, भूतार्थस्वभावना आश्रये
सम्यग्दर्शन न थवानो महान सिद्धांत पण आमां आवी जाय छे.
* जुओ, स्वज्ञेयने जाणवानी एटले के सम्यग्दर्शन करवानी आ वात छे. भाई,
तारा ज्ञानने स्वज्ञेय तरफ वाळ्‌या वगर तने तारुं साचुं ज्ञान क्यांथी थशे?
स्वसन्मुख थयेला अतीन्द्रियज्ञान वडे ज तारी अचिंत्य प्रभुता तने देखाशे, ने
परम आनंद थशे.
* ईन्द्रियोनुं–रागनुं–व्यवहारनुं अवलंबन छोडीने, निजस्वभावनुं अवलंबन लईने
ज्यां ज्ञानचेतना स्वज्ञेयमां मग्न थई त्यां अतीन्द्रिय आनंदनो दरियो उल्लस्यो.
दरियो ऊछळे तेने कोण रोकी शके? ज्ञान जो ईन्द्रियोना अवलंबनमां रोकाय तो
आनंदनो दरियो उल्लसे नहीं.
* खरो जिज्ञासु शिष्य आत्माने जाणवानी धगशपूर्वक पूछे छे के प्रभो! आत्मानी
एवी असाधारण निशानी बतावो के जेना वडे सर्वे परद्रव्योथी भिन्न आत्मानो
अनुभव थाय! एवा जिज्ञासुने ‘
अलिंगग्रहण’ ना अर्थोद्वारा आचार्यदेवे परमार्थ
आत्मा ओळखाव्यो छे. अहो, स्वानुभवनां अलौकिक रहस्यो खोलीने संतोए मोटो
उपकार कर्यो छे.
* एकला अनुमानना बळे आत्मा जाणवामां आवे नहि. ईन्द्रियगम्य चिह्नो वडे
आत्मानुं अनुमान थाय नहि. अनुमान ते व्यवहार छे, स्वसंवेदन प्रत्यक्ष ते निश्चय
छे. स्वसंवेदन–प्रत्यक्षरूप निश्चय वगर एकला परोक्ष अनुमानवडे आत्मानुं साचुं
स्वरूप जणाय नहीं.
* अनुभव वगरना एकला शास्त्रज्ञानवडे आत्मा जणाय नहीं. एकला शास्त्र तरफनुं
ज्ञान ते पण ईन्द्रियज्ञान छे, तेनाथी अनुमान करीने पण आत्मानुं स्वरूप
ओळखाय नही. अंतर्मुख थईने निर्विकल्प अनुभव करे त्यारे ज आत्मानुं साचुं
स्वरूप अनुभवमां आवे.
* आत्मानुं ज्ञान एवुं लंगडुं नथी के तेणे ईन्द्रियोनो टेको लेवो पडे. ईन्द्रियगम्य चिह्नो
के मनगम्य एवा संकल्प विकल्पो, तेना वडे आत्मानुं खरूं स्वरूप नक्की न थई शके;
केमके ईन्द्रियगम्य चिह्नो ते कांई आत्मानां चिह्न नथी. आत्मानुं चिह्न तो अतीन्द्रिय
उपयोग छे; अने ते तो प्रत्यक्ष स्वसंवेदननो विषय छे. आत्मामां एवी प्रकाशशक्ति
छे के स्वसंवेदनना प्रकाशवडे पोते पोताने प्रत्यक्ष अनुभवे छे.