: ३२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९प
“अमे जिनवरनां संतान” (नवा सभ्योनां नाम)
सभ्य नं. नाम गाम
२३७० पीयुषकुमार एन. जैन कलकत्ता
२३७१ रूपाबेन आर. जैन कलकत्ता
२३७२ हेमंतकुमार एम. जैन जमशेदपुर
२३७३ बीनाबेन. वी. जैन मुंबई
२३७४A नयनाबेन सी. जैन मुंबई
२३७४B मयुरीबेन सी. जैन मुंबई
२३७४C गीरीबाळा सी. जैन मुंबई
२३७पA रमेशचंद्र एस जैन जोरावरनगर
२३७पB मनुभाई एस. जैन जोरावरनगर
२३७पC राजश्रीबेन एस. जैन जोरावरनगर
२३७पD कोकीलाबेन एस. जैन जोरावरनगर
२३७६ A अंजनाबेन केशवलाल जैन जसदण
सभ्य नं. नाम गाम
२३७६ B महेन्द्रकुमार के. जैन जसदण
२३७७ दिलीपकुमार आर. जैन राजकोट
२३७८A सतीशकुमार एम. जैन मुनाई
२३७८ B दिलीपकुमार के. जैन मुनाई
२३७९ दिलीपकुमार ए. जैन गोंडल
२३८० किरणकुमार डी. जैन वेरावळ
२३८१ A मुकुन्दलाल एम. जैन सोनगढ
२३८१ B दिलीपकुमार वी. जैन सोनगढ
२३८२ A हरेशकुमार आर. जैन महुवा
२३८२ B मयुरीबेन आर. जैन महुवा
२३८२ C रक्षाबेन आर. जैन महुवा
२३८३ कीरीटकुमार सी. जैन कलकत्ता
(१) सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र के जे मोक्षनुं कारण छे ते सम्यग्दर्शनादिनुं
एकाकारपणुं ज्ञानस्वभाव साथे थाय छे, राग साथे तेनुं एकाकारपणुं नथी. राग
मोक्षमार्गने रोकनार छे.
(२) ‘स्वतत्त्व’ तेने कहेवाय के जे स्वभाव साथे सदाय एकमेक होय. पोतानुं
सत्त्व (सत्पणुं–होवापणुं) कई रीते छे ते जाण्या वगर मोक्षमार्ग साधी शकाय नहीं.
स्वतत्त्व शुं छे–तेनी ज जेने खबर नथी ते कोनी श्रद्धा करशे? कोनुं ज्ञान करशे? ने
कोनामां ठरशे? रागने जे मोक्षनुं कारण माने छे ते तो रागने स्वतत्त्व मानीने, तेनी ज
श्रद्धा, तेनुं ज ज्ञान ने तेमां ज लीनता करे छे एटले के मिथ्यात्वादिरूप संसारमार्गने ज
सेवे छे.
(३) सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग छे ते तो आत्माना ज आश्रये छे,
रागनो किंचित् पण आश्रय तेमां नथी. रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग रागथी अत्यंत निरपेक्ष
छे. जेम परद्रव्यना आश्रये मोक्षमार्ग नथी, तेम रागना आश्रये पण मोक्षमार्ग नथी.
(४) अहा, आवो सरल मार्ग! अंतरमां जराक विचार करे तो ख्याल आवी
जाय के मार्ग तो आवो ज होय.