Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९प आत्मधर्म : ११ :
उपयोगनी निर्विकल्पधारा चालु रहेती नथी पण भेदज्ञाननी अखंडधारा चालु
रहे छे, सविकल्पदशामांय तेने भेदज्ञाननी धारा तो चालु ज छे; आ रीते
अच्छिन्न भेदज्ञानधारा वडे अल्पकाळमां आत्मानी पूर्ण शुद्धता प्रगट करीने
केवळज्ञान थाय छे.
• सम्यग्द्रष्टि कांई सदाय निर्विकल्प अनुभवमां न रही शके; परंतु सविकल्प दशा
वखतेय तेनुं सम्यग्दर्शन के भेदज्ञान खसे नहि. शुभ के अशुभ वखतेय ते शुभ–
अशुभथी जुदी एवी ज्ञानधारा तेने वर्ते ज छे; शुभाशुभ वखते कांई ज्ञानधारा
तूटी जती नथी, के ज्ञानधारा पोते मेली थई जती नथी. शुभाशुभ वखते ज
तेनाथी भिन्न शुद्धआत्मानुं ज्ञान वर्ते छे, ते कांई अज्ञान थई जतुं नथी. –आवी
अविच्छिन्न ज्ञानधारा तेनुं नाम धर्म छे, ने ते संवर तथा मोक्षमार्ग छे.
भावयेत् भेदविज्ञानं
ईदं अच्छिन्नधारया;
तावत् यावत् परात्च्युत्वा
ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठताम्!

आ भेदविज्ञानने अच्छिन्नधाराए
त्यांसुधी भावो के ज्यांंसुधी परथी भिन्न
थईने ज्ञान ज्ञानमां ज स्थिर थई जाय.
आत्मधर्मनो आगामी अंक, एटले के नवा वर्ष नो पहेलो अंक कारतक मासमां
(ता. १प–११–६९ ना रोज) पोस्ट करवामां आवशे. दीवाळीनो ने नूतनवर्षनो
मंगल सन्देश मेळववा आपनुं लवाजम वेलासर भरी देशोजी. कारतक मास
पछीना अंको पण ए ज रीते दर महिने पंदरमी तारीखे प्रगट थता रहेशे.
आत्मधर्मना आ सालना भेटपुस्तक (ज्ञानचक्षु के वीतरागविज्ञान) माटेना कृपनो
जेमनी पासे होय तेमणे ते भेटकुपनना पुस्तको दीवाळी पहेलां (ता. ९–११–६९
सुधीमां) मेळवी लेवानी व्यवस्था करवी; त्यार पछी ते भेटपुस्तको आपवानुं बंध
थशे.