: आसो : २४९प आत्मधर्म : १३ :
३९०. शुक्ल के कृष्ण लेश्यापरथी ज्ञानी–
अज्ञानीनुं माप थई शके?
ना; लेश्या शुक्ल छतां अज्ञानी पण
होय, लेश्या कृष्ण छतां ज्ञानी पण
होय.
३९१. कुदेव–कुगुरु–कुधर्मना सेवनथी शुं
थाय?
जीवनुं घणुं ज अहित थाय; मिथ्यात्व
पुष्ट थाय.
३९२. कुगुरु कोना जेवा छे?
पत्थरनी नौका जेवा; पोते डुबे ने
एनो आश्रय लेनार पण डूबे.
३९३. कल्याणनुं मूळ शुं छे?
साचा देव–गुरु–धर्मने ओळखीने तेनुं
सेवन करवुं ते.
३९४. जैनधर्मनुं गुरुपद केवुं छे?
अहा, ए तो महान पवित्र परमेष्ठीपद
छे, निर्ग्रंथ छे.
३९प. ते गुरु शुं करे छे?
शुद्धरत्नत्रयथी आत्माना आनंदने
अनुभवे छे.
३९६. शुं कुगुरुओ जीवने डुबाडे छे?
ना; पोताना मिथ्याभावथी ज जीव
डुबे छे.
३९७. रागथी धर्म मनावे ते महावीरना
मार्गमां छे?
ना; महावीरनो मार्ग तो वीतराग छे.
३९८. वीतराग अरिहंतदेवेने खरा
नमस्कार क्यारे थाय?
रागनो रस छोडीने वीतरागभावने
आदरे त्यारे.
३९९. अरिहंत परमात्मानी साची स्तुति
कोण करी शकशे? सम्यग्द्रष्टि.
४००. मिथ्याद्रष्टिजीव अरिहंतनी साची
स्तुति केम नहि करी शके?
केमके अरिहंतना साचा स्वरूपने ते
ओळखतो नथी.
४०१ अरिहंतनुं साचुं स्वरूप क्यारे
ओळखाय?
रागथी जुदो पडी, पोताना शुद्धस्वरूप
तरफ वळे त्यारे.
४०२ महावीर भगवान रागथी धर्म
मानता हता?
ना.
४०३. तो जे रागने धर्म माने ते
महावीरने माने छे?
ना.
तो महावीरने कोण माने छे?
वीर थईने वीतरागमार्गने जे साधे ते.
४०प. जैनसाधुओ वस्त्र पहेरे?
ना.
४०६. वस्त्रवाळा साधु मानीए तो शुं
वांधो?
तो गृहीतमिथ्यात्व, अने कुगुरुसेवननो
दोष लागे.
४०७. श्रेणीकराजाए नरकनुं आयुष्य केम
बांध्युं?
मिथ्याद्रष्टिपणे निर्ग्रंथ मुनि पर उपसर्ग
कर्यो तेथी.