Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
४०८. श्रेणीकराजाए तीर्थंकर नामकर्मं
क्यारे बांध्युं?
सम्यग्द्रष्टिपणे ज्यारे वीर प्रभुना
चरणोमां दर्शनशुद्धि वगेरे भावना
भावी त्यारे.
४०९. कुगुरु आवे तो शुं करवुं?
तो जाणवुं के आ साचा गुरु नथी.
४१०. पण सामाने दुःख लागे तो?
एना भाव एनी पासे रह्या, एमां
तारे शुं? तुं सम्यक् भाववडे तारुं हित
करी ले.
४११. दिगंबरमनुष्य पण कुगुरु होय?
हा, जैनधर्मथी विरुद्ध प्ररूपणा करे तो
ते पण कुगुरु.
४१२. आवी वात शा माटे करो छो?
सत्य समजीने जीव पोतानुं हित करे ते
माटे.
४१३. भगवान भक्तोने तारे ने
राक्षसोने हणे–ए खरूं?
ना; एवा राग–द्वेषनां कार्य भगवान
करे नहीं.
४१४. रामचंद्रजी अने हनुमानजी तेओ
भगवान हता?
हा; तेओ सर्वज्ञवीतराग थईने मोक्ष
पाम्या छे.
४१प. राम अने हनुमानने पूजी शकाय?
हा, तेमने वीतरागस्वरूपे ओळखीने
पूजाय.
४१६. अरिहंत भगवानने कोई
दोषवाळा माने तो?
तो कांई भगवान दोषित थई जता
नथी पण ते जीवने मिथ्यात्व थाय छे.
४१७. देव एटले कोण?
देव एटले सर्वज्ञ–वीतराग पदने
पामेला भगवान.
४१८. पूर्ण सुख क्यां होय?
पूर्ण सुख तो वीतरागता ने सर्वज्ञतामां
ज होय.
४१९. सर्वज्ञ–वीतरागदेवे शुं बताव्युं?
आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव अने
वीतरागी मोक्षमार्ग बताव्यो.
४२०. भवनां दुःखथी जेओ डरता होय
तेणे शुं करवुं?
कुमार्ग छोडीने सर्वज्ञदेवना वीतराग
मार्गने सेववो.
४२१. जिनप्रतिमा केवी कीधी छे.?
जिनप्रतिमा जिनसारखी, भाखी
आगममांय’
४२२. आखा जगतने जाणे पण करे नहि
कोईनुं–ए कोण? सर्वज्ञदेव.
४२३. सर्वज्ञ–वीतरागदेवने छोडीने मोही
जीवोने कोण भजे?
जे तीव्र मोही होय ते.
४२४. सर्वज्ञदेवे कहेली वस्तु केवी छे?
अनेकान्तरूप; द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप
छे.
४२प. साचुं ज्ञान कयुं छे?
ज्ञान अने रागनी भिन्नतानुं ज्ञान ते
ज साचुं ज्ञान छे.