: आसो : २४९प आत्मधर्म : १५ :
४२६. मतिश्रुतज्ञान ने केवळज्ञान
बंनेनी जात केवी छे?
बंनेनी जात सरखी छे; बंने राग
वगरनां छे.
४२७. शास्त्रोनुं भणतर साचुं क्यारे?
पोताना ज्ञानस्वभावनो निर्णय करे
त्यारे.
४२८. ज्ञानचेतना क्यारे जागे?
ज्ञानस्वरूपनो अनुभव करे त्यारे.
४२९. जैनशास्त्रोनो सार शुं?
ज्ञाननो अनुभव अर्थात् वीतराग–
विज्ञान
४३०. मोक्षमार्गमां वच्चे व्यवहार
आवे–ते केवो छे?
ते जाणवा योग्य छे, आदरवायोग्य
नथी.
४३१. आदरवायोग्य शुं छे?
परम ज्ञायकभाव.
४३२. आहारदानथी मोक्ष मळे?
ना; तेनुं फळ पुण्य छे, मोक्ष नहीं.
४३३. मोक्ष शेनाथी मळे?
शुद्ध रत्नत्रयथी.
४३४. ओळख्या वगर अरिहंतदेवने
माने तो?
ओळख्या वगर मिथ्यात्व न छूटे ने
साचुं हित न थाय.
४३प. धर्मीजीव पोतानी प्रसिद्धि शेमां
करे छे?
पोतानी निर्मळपर्यायमां, ते बहारनी
प्रसिद्धिने चाहता नथी.
४३६. चारित्रवंत मुनिराज केवा छे?
ते सिद्धप्रभुना पाडोशी छे.
४३७. मुमुक्षु जीव शुं करे छे?
अनुभव माटे निजस्वरूपने अंतरमां
वारंवार विचारे छे.
४३८. अत्यारे शेनो अवसर छे?
आत्मानुं हित करवानो आ उत्तम
अवसर छे.
४३९. जीवने परम सुख क्यारे थाय?
सिद्धपदने प्रगट करे त्यारे.
४४०. बीजी ढाळना अंतमां शुं
भलामण करी छे?
अब आतम के हितपंथ लाग ।’
आपना घरनी शोभा!
मात्र नजीवा खर्चमां आप आपना घरने शोभाववा
मांगो छो? हा.....तो चार रूा. लवाजम मोकलीने आत्मधर्म
मंगावो, अने पछी जुओ के एक वर्ष सुधी उत्तम धार्मिक–
संस्कार वडे तमारुं घर केवुं शोभी ऊठे छे!