: १६ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
सम्यक्त्वना आचरणरूप चारित्र–ते प्रथम चारित्र छे.
(अष्टप्रवचन बीजा भागमांथी एक उपयोगी प्रकरण)
चारित्रप्राभृतमां श्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के रत्नत्रयनी शुद्धताने माटे बे
प्रकारनुं चारित्र छे. ते बे प्रकार कया?–
जिणणाणदिठ्ठिसुद्धं पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं।
विदियं संजमचरणं जिणणाणसंदेसियं तं पि।।५।।
प्रथम तो सम्यक्त्वना आचरणरूप चारित्र छे–ते जिनदेवना ज्ञानदर्शनश्रद्धान
वडे शुद्ध छे. बीजुं संयमना आचरणरूप चारित्र छे–ते पण जिनदेवना ज्ञानवडे दर्शावेलुं
शुद्ध छे. सर्वज्ञभगवाने जेवुं तत्त्वनुं स्वरूप कह्युं छे तेना ज्ञान–श्रद्धानपूर्वक निःशंकतादि
गुणसहित जे शुद्ध सम्यग्दर्शन प्रगटे तेनुं नाम सम्यक्त्वनुं आचरण छे. एवा
सम्यक्त्वपूर्वक संयमनी आराधना ते चारित्रनुं आचरण छे. आवा बंने आचरण ते
रत्नत्रयनी शुद्धीनुं कारण छे. आम जाणीने शुं करवुं?–
एवं चिय णाऊण य सव्वे मिच्छत्तदोष संकाइ।
परिहरि सम्मत्तमला जिणभणिया तिविहजोएण।।६।।
भगवाने कहेला पूर्वोक्त बे प्रकारनां चारित्रने जाणीने मिथ्यात्व अने शंकादि
दोषो तेमज सम्यक्त्वने मलिन करनारा अतिचार–दोषो तेने त्रिविधयोगे छोडीने,
सम्यक्त्वनुं आचरण करवुं. ते दोषो दूर थतां निःशंकता वगेरे आठ गुण सहित
सम्यक्त्व–आचरण प्रगट थाय छे. मोक्षमार्गनुं आ पहेलुं आचरण छे.
तं चैत्र गुणविसुद्धं जिनसम्यक्त्वं सुमोक्षस्थानाय।
तत् चरति ज्ञानयुक्तं प्रथमं सम्यक्त्वचरणचारित्रम्।।८।।
निःशंकतादि गुणोथी विशुद्ध एवुं जे जिन सम्यक्त्व, तेनुं यर्थाथ ज्ञानसहित
आचरण करवुं ते सम्यक्त्व–आचरण छे; उत्तम मोक्षस्थाननी प्राप्ति माटे प्रथम आ
सम्यक्त्व–आचरण चारित्र छे. –आ रीते मोक्षमार्गमां सम्यग्दर्शननी प्रधानता छे.