: १८ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
• तेने भोगोनी आकांक्षा नथी तेथी ते निष्कांक्ष छे. (२)
• धर्म अने धर्मात्माओ प्रत्ये तेने ग्लानि नथी तेथी ते निर्विचिकित्स छे. (३)
• देव गुरु–धर्ममां के वस्तुस्वरूपमां तेने मूढता नथी तेथी ते अमूढद्रष्टिवंत छे. (४)
• धर्मात्माना दोषने गौण करीने उपगूहन करे छे ने गुणनी वृद्धि करे छे तेथी ते
उपगूहनगुणसहित छे. (प)
• पोताने तेमज बीजा धर्मात्माने धर्मनी डगवा देतो नथी पण धर्ममां स्थिर करे छे,
एवुं स्थितिकरण अंग छे. (६)
• रत्नत्रयधर्म अने धर्मात्माओ प्रत्ये विशेष प्रीतिरूप वात्सल्य छे. (७)
• पोतानी शक्ति मुजब धर्मनो महिमा प्रगट करीने तेनी प्रभावना करे छे. (८)
–पोताना शुद्धआत्मानी अनुभूतिसहित आवा आठ अंगोनुं पालन करवुं ते
सम्यक्त्वनुं आचरण छे. चोथा गुणस्थाने धर्मीने आवा सम्यक्त्व–आचरणरूप प्रथम
चारित्र होय छे. त्यारपछी निजस्वरूपमां ठरतां मुनिदशारूप वीतरागभाव खीले त्यारे
संयमना आचरणरूप बीजुं चारित्र होय छे. –आवा बंने चारित्र ते मोक्षनुं कारण छे.
मुनिधर्म के श्रावकधर्म बंनेमां सम्यग्दर्शन तो मुख्य होय ज छे. ते सम्यग्दर्शन
शाश्वतस्वभावना आश्रये थयेलुं छे; सम्यग्द्रष्टिनां परिणाम शुद्ध ज्ञाताद्रष्टा स्वभावमय
होय छे. आवा शुद्धस्वभावना अनुभवनो वारंवार अभ्यास करवाथी ज्ञानमय
शुद्धआत्मा प्रगट थाय छे एटले के केवळज्ञान थाय छे.
चारित्र
सम्यग्दर्शन थई गयुं पछी
चारित्रनुं शुं काम छे? –सम्यग्दर्शनथी ज
मोक्ष थई जशे एम कहीने कोई
चारित्रनो अनादर करे तो ते मिथ्याद्रष्टि
छे, स्वछंदी छे. सम्यग्दर्शन पछी पण
चारित्रदशा अंगीकार करे त्यारे ज मुक्ति
थाय छे; अने सम्यग्द्रष्टिने ते
चारित्रदशानी सदाय भावना रहे छे के
धन्य ते दिवस के ज्यारे चारित्रदशा
अंगीकार करीए.
सम्यक्त्व
सम्यग्दर्शन थयुं होय तो चारित्र
केम नथी लेता? माटे सम्यग्दर्शन पण
नथी, –एम चारित्रना अभावमां
सम्यक्त्वनो पण अभाव माने, तो तेने
सम्यक्त्वना स्वरूपनी खबर नथी, ते पण
मिथ्याद्रष्टि छे. सम्यग्दर्शन होय,
चारित्रदशानी भावना होय अने छतां
हजारो–लाखो वर्षो सुधी चारित्रदशा लई
न शके ने गृहस्थदशामां रहे; तोपण तेने
सम्यग्दर्शन छे अने ते मोक्षना मार्गमां छे.