Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९प आत्मधर्म : १९ :
मोक्षमार्गमां सम्यक्त्वनी प्रधानता
आचार्यदेव कहे छे के हे जीवो! मोक्षना परम सुखने माटे सम्यक्त्वने तमारुं
साथीदार बनावो. रत्नत्रयरूपी नौकाने मोक्षमां लई जवा माटे सम्यग्दर्शन खेवटीया
समान छे, मोक्षमार्गमां ते कर्णधार छे. सम्यग्द्रष्टिना परिणाममां तो रागथी पार
आत्मानो अनुभव छे. तेने आत्मामां एकाग्रतापूर्वकना व्रत–तपमां कलेश नथी
लागतो पण आनंदनी वृद्धि थाय छे. आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप ओळखवुं ते
सम्यग्दर्शननी रीत छे. अरिहंतदेवना आत्माना शुद्ध द्रव्य–गुण पर्यायने ओळखतां
पोताना आत्मानो शुद्ध स्वभाव पण ओळखाय छे, ने मोहनो नाश थईने सम्यक्दर्शन
प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन पामवानो आवो सरस उपाय कुंदकुंद प्रभुए प्रवचनसार गा. ८०
मां बताव्यो छे. ते सम्यक्त्व अतीन्द्रिय आनंद सहित छे. समकितीना हृदयमां भगवान
बेठा छे.
जेणे रागथी जुदो पाडीने शुद्ध आत्माने जाण्यो नथी, रागमां ज जे ऊभो छे, ते
रागमां ऊभेलो अज्ञानी जीव शास्त्राभ्यास करे के व्रत–तप करे, ते बधुंय तेने कष्टरूप
छे, तेमां क्यांय ज्ञाता–द्रष्टा स्वभावनी अनुभूतिनो आनंद नथी. रागमां आनंद क्यांथी
होय? कष्ट वगरनो एटले के रागनी आकुळता वगरनो जे निजानंदस्वभाव, तेनी
ओळखाण वगर आनंद थाय नहीं ने कष्ट मटे नहीं, माटे वीतरागी देव–गुरु केवा होय
अने तेमणे उपदेशेला शुद्ध तत्त्वनुं स्वरूप केवुं होय, ते बराबर ओळखीने पहेलां
सम्यग्दर्शन करवुं जोईए, तेमज पहेलां आवा सम्यग्दर्शननो उपदेश देवो जोईए; केमके
ते ज धर्मनुं मूळ छे. सम्यग्दर्शन थया पछी मुनिधर्म के श्रावकधर्म होय, सम्यग्दर्शन
वगर ते कोई धर्म होय नहीं; माटे सम्यग्दर्शननो प्रधान उपदेश छे. मोक्षना मार्गमां
सम्यक्त्वनी प्रधानता छे.
पोतानुं हित चाहनारा जीवोने, श्रीगुरु प्रथम तो सम्यग्दर्शननो उपदेश आपे
छे. आत्मानुं साचुं स्वरूप शुं छे ते समजीने सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते प्रथम कर्तव्य छे,
केमके ते ज धर्मनुं मूळ छे. आत्माना भूतार्थ स्वभावनी सन्मुख थईने तेनी श्रद्धा करवी
ते निश्चय सम्यग्दर्शन छे. ज्यारे आवुं सम्यग्दर्शन प्रकाशमान थाय त्यारे ज
मोक्षमार्गनो प्रारंभ थाय छे. सम्यग्दर्शन होतां ज ज्ञान अने चारित्र साचां थाय छे.
सम्यग्दर्शन थतांनी साथे ज स्वसंवेदनरूप सम्यग्ज्ञान तथा स्वरूपाचरणचारित्र पण
थई जाय छे. तेथी समन्तभद्रस्वामी रत्नकरंड–श्रावकाचारमां कहे छे के–