समान छे, मोक्षमार्गमां ते कर्णधार छे. सम्यग्द्रष्टिना परिणाममां तो रागथी पार
आत्मानो अनुभव छे. तेने आत्मामां एकाग्रतापूर्वकना व्रत–तपमां कलेश नथी
लागतो पण आनंदनी वृद्धि थाय छे. आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप ओळखवुं ते
सम्यग्दर्शननी रीत छे. अरिहंतदेवना आत्माना शुद्ध द्रव्य–गुण पर्यायने ओळखतां
पोताना आत्मानो शुद्ध स्वभाव पण ओळखाय छे, ने मोहनो नाश थईने सम्यक्दर्शन
प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन पामवानो आवो सरस उपाय कुंदकुंद प्रभुए प्रवचनसार गा. ८०
मां बताव्यो छे. ते सम्यक्त्व अतीन्द्रिय आनंद सहित छे. समकितीना हृदयमां भगवान
बेठा छे.
छे, तेमां क्यांय ज्ञाता–द्रष्टा स्वभावनी अनुभूतिनो आनंद नथी. रागमां आनंद क्यांथी
होय? कष्ट वगरनो एटले के रागनी आकुळता वगरनो जे निजानंदस्वभाव, तेनी
ओळखाण वगर आनंद थाय नहीं ने कष्ट मटे नहीं, माटे वीतरागी देव–गुरु केवा होय
अने तेमणे उपदेशेला शुद्ध तत्त्वनुं स्वरूप केवुं होय, ते बराबर ओळखीने पहेलां
सम्यग्दर्शन करवुं जोईए, तेमज पहेलां आवा सम्यग्दर्शननो उपदेश देवो जोईए; केमके
ते ज धर्मनुं मूळ छे. सम्यग्दर्शन थया पछी मुनिधर्म के श्रावकधर्म होय, सम्यग्दर्शन
वगर ते कोई धर्म होय नहीं; माटे सम्यग्दर्शननो प्रधान उपदेश छे. मोक्षना मार्गमां
सम्यक्त्वनी प्रधानता छे.
केमके ते ज धर्मनुं मूळ छे. आत्माना भूतार्थ स्वभावनी सन्मुख थईने तेनी श्रद्धा करवी
ते निश्चय सम्यग्दर्शन छे. ज्यारे आवुं सम्यग्दर्शन प्रकाशमान थाय त्यारे ज
मोक्षमार्गनो प्रारंभ थाय छे. सम्यग्दर्शन होतां ज ज्ञान अने चारित्र साचां थाय छे.
सम्यग्दर्शन थतांनी साथे ज स्वसंवेदनरूप सम्यग्ज्ञान तथा स्वरूपाचरणचारित्र पण
थई जाय छे. तेथी समन्तभद्रस्वामी रत्नकरंड–श्रावकाचारमां कहे छे के–