: २० : आत्मधर्म : आसो : २४९प
दर्शनं ज्ञानचारित्रात् साधिमानमुपाश्नुते, दर्शनं कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे
प्रचक्षते।
ज्ञान अने चारित्र पहेलां सम्यग्दर्शननी उपासनां करवामां आवे छे, केमके
सम्यग्दर्शन मोक्षमार्गमां कर्णधार छे–नाविक छे. रत्नत्रयरूप जे मोक्षमार्ग, तेना
खेवटिया समान सम्यग्दर्शन छे; तेना वगर ज्ञान–चारित्रमां सम्यक्पणुं आवतुं नथी,
माटे तेनी मुख्यता छे. ए ज वात पं. दौलतरामजीए छहढाळामां पण कही छे के–
मोक्षमहलकी परथम सीडी, या विन ज्ञान–चरिता–
सम्यक्ता न लहे, सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा
– माटे कह्युं के पहेलां सम्यग्दर्शननो उपदेश कर्तव्य छे. विशेषपूज्य चारित्रदशा छे,
पण ते चारित्रदशानुं मूळ सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन वगर चारित्र होतुं नथी, माटे पहेलो
उपदेश सम्यग्दर्शननो करवो जोईए. सम्यग्दर्शन पछी, मुनिधर्मनो उपदेश देवो; ने जेनाथी
मुनिधर्म अंगीकार करी न शकाय तेने श्रावकधर्मनो उपदेश देवो–एम पुरुषार्थसिद्धिउपायमां
उपदेशनो क्रम कह्यो छे. –पण पहेलां सम्यग्दर्शन तो मुख्य राखीने ते वात छे. सम्यग्दर्शन
वगर सीधो मुनिदशानो उपदेश देवा मांडे–ए तो क्रमभंग उपदेश छे. सम्यग्दर्शननी जेमां
प्रधानता न होय ते भगवाननो उपदेश नथी. भगवाने तो सम्यक्त्वनी प्रधानतावाळो
उपदेश आप्यो छे. ‘समकित जेनुं मूळ छे ते धर्म जिनउपद्रिष्ट छे’ एम जाणीने हे भव्य
जीवो! तमे प्रथम ज सम्यक्त्वनी आराधना करो.
राम, हनुमान ने महावीर
प्रश्न :– राम, हनुमान ने महावीर ए बधायने सरखां कही शकाय?
उत्तर:– हा; ते त्रणेय महात्माओए आत्माने ओळखीने वीतराग थईने
मोक्षदशा प्राप्त करी छे, तेथी तेमने सरखां कही शकाय. ‘नमो
सिद्धाणं’ एम आपणे बोलीए तेमां महावीर भगवाननी जेम
राम अने हनुमानने पण नमस्कार आवी ज जाय छे, केमके तेओ
पण महावीर जेवो ज सिद्ध भगवान छे. आ रीते राम के
हनुमानने साचा सर्वज्ञ–वीतराग भगवान तरीके ओळखवाने
बदले कोई तेमनी ओळखाणमां भूल करतुं होय तो तेथी कांई
तेओ आपणा भगवान मटी जता नथी.
(साचा देवनुं स्वरूप समजवा वीतरागविज्ञान भाग बीजो
वांचो)