जन्मकल्याणकने ऊजवे छे. आनंदना हिलोळे चडेलो, चैतन्यना आनंदमां किल्लोल
करतो ते आत्मा माताना पेटमां त्रण ज्ञान साथे लईने आव्यो छे; ईन्द्रो कहे छे–हे
माता! तने पण धन्य छे के आवा रत्नने तें तारी कुंखमां धारण कर्युं छे. ए वखतेय
भगवानना आत्माने देहथी भिन्न आत्मानुं भान वर्ते छे, देह अने राग वगर ज तेनी
चेतनानो प्रवाह चाली रह्यो छे ने निर्जरा ज थती जाय छे शुद्ध आत्मद्रष्टिना प्रतापे
धर्मीने निर्जरा ज थती जाय छे. अज्ञानीने रागमां एकत्वद्रष्टिने कारणे बंधन ज थाय
छे. आ रीते द्रष्टि क्यां पडी छे तेना उपर बधी रमत छे. उपयोग शुद्धात्मामां एकाग्र
थयो त्यां निर्जरा छे, ने उपयोग रागमां एकाग्र थयो त्यां बंधन छे, –आ जैनसिद्धांतनुं
टूंकुं रहस्य छे.
निर्जरी जाय छे–केमके ते उदय वखते ज तेनाथी भिन्न एवा शुद्धात्मा उपर द्रष्टि वर्ते छे,
एटले तेमां कर्मफळनो भोगवटो खरेखर नथी, पण निर्जरा ज छे. ए ज रीते ते उदय
प्रसंगे कंईक हर्ष–शोक थाय, छतां धर्मीजीव कर्मोथी बंधातो नथी, पण ते वखतेय हर्ष–
शोकथी भिन्न एवा शुद्धज्ञानपणे ज पोताने अनुभवतो थको निर्जरा ज करे छे.
भेदज्ञाननुं आ अद्भुत सामर्थ्य छे; ज्ञानीनी ज्ञानपरिणति समस्त परभावोथी अत्यंत
विरक्त थई गई छे, तेथी तेनो वैराग्य पण अद्भुत छे. , रागनो एक अंशपण ते
ज्ञानपरिणतिमां नथी. अहो! ज्ञानीना ज्ञान–वैराग्य आश्चर्यकारी छे. ते ज्ञान–वैराग्यनुं
अद्भुत सामर्थ्य कर्मनी निर्जरा ज करी नांखे छे; उदय अने ज्ञानने ते जुदा ज देखे छे.
नांखे छे. धर्मीनी भेदज्ञान परिणतिनुं अचिंत्य सामर्थ्य छे. आवा भेदज्ञानने ओळखीने
अंतरमां वारंवार तेनो अभ्यास करवा जेवुं छे.