Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९प आत्मधर्म : २३ :
हुं एक ज्ञायकभाव छुं
(निर्जरा अधिकारना प्रवचनोमांथी)
धर्मी–सम्यग्द्रष्टिने निर्जरा ज थाय छे;– कया कारणे तेने
निर्जरा थाय छे?–ते अहीं समजावे छे. कर्मना उदयभावोथी
भिन्न एवा एक ज्ञायक भावपणे ज धर्मी पोताने अनुभवे
छे, रागना अंशने पण पोताना ज्ञायकभावमां भेळवता
नथी, तेने पोताथी भिन्न जाणे छे तेथी राग प्रत्ये अत्यंत
विरकत छे. –आम भेदज्ञान सहितना वैराग्यने कारणे धर्मीने
निर्जरा ज थाय छे. एवा धर्मीनी दशानुं आ वर्णन छे.
क्षणेक्षणे जेने अनंत कर्मोनी निर्जरा थया करे छे एवा धर्मी सम्यग्द्रष्टि जीव,
समस्त परथी भिन्न, कर्मना उदयविपाकोथी तद्न जुदो, संयोगोथी जुदो, तेमज कंईक
रागादि भावो थता होय तेनाथी पण जुदो, एक ज्ञायकस्वभावपणे ज पोताने अनुभवे
छे; कर्मनो विपाक ते मारो स्वभाव छे ज नहीं–एम तेने पोताथी भिन्नपणे अनुभवे
छे. संयोगोनी भीडना भीडामां तेनुं ज्ञान भिंसाई जतुं नथी, तेनाथी जुदुं ने जुदुं ज
रहे छे. राग–द्वेषना भावो थया ने ज्ञानमां जणाया, त्यां पण धर्मीनुं ज्ञान ते
उदयभावोथी लेपाई जतुं नथी. आवा भिन्न ज्ञाननो अनुभव ते ज धर्मीना मापनुं
‘थर्मोमीटर’ छे. एवा ज्ञानवडे ज धर्मी ओळखाय छे.
बापु! आवा ज्ञानना संस्कार आत्मामां पाडवा जोईए. आ ज्ञानना एवा द्रढ
संस्कार आत्मामां नांखवा जोईए के सम्यग्दर्शन पाम्ये छूटको. अने पछी पण एना ज
संस्कारना बळथी केवळज्ञान लीधे छूटको. आवा ज्ञान वगर आ संसारमां क््यांय कोई
शरण नथी. आवुं ज्ञान थतां जीवने सर्वे परद्रव्यो अने परभावोथी अत्यंत विरक्ति
थाय छे, एनुं ज नाम वैराग्य छे; धर्मी जीवने ज आवा ज्ञान–वैराग्य होय छे.
जड कर्मनो उदय अने तेना तरफना वलणवाळा रागादि भावो, ते बंने