अनुभवने लीधे तेने संवर थाय छे, तेने कर्मनुं बंधन थतुं नथी पण निर्जरा ज थाय छे.
जेम कादवना संयोगमां के अग्निना संयोगमां सोनुं तो सोनुं ज रहे छे, तेम कर्मना
अनेकविध संयोगमां के रागादिना संयोगमां पण ज्ञानीनुं ज्ञान तो ज्ञान ज रहे छे.
तेनाथी भिन्न आवा ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवता हता. आवा आत्मानो अनुभव कर्ये
ज जन्म–मरणनो अंत आवे छे. नरकना संयोगमां रहेला सम्यग्द्रष्टि जीव ते संयोगथी
भिन्न ज्ञानस्वरूपे ज पोताने अनुभवे छे; ए ज रीते स्वर्गना वैभवनी वच्चे रहेला
सम्यग्द्रष्टि पण पोताने ते संयोगथी भिन्न ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवे छे. ईच्छाओ थाय
ते पण ज्ञानथी भिन्न छे. आ रीते विविध प्रकारना जे उदय विपाको ते कोई मारो
स्वभाव नथी, हुं तो तेनाथी अलिप्त एवो एक ज्ञायकभाव ज छुं–आवा ज्ञायकभावमां
शुभाशुभनुं वेदन नथी. पुण्यनो उदय पण आत्मानो भाव नथी, आत्मानो भाव तो
ज्ञायक एक भाव छे. एवा भावपणे ज धर्मी पोताने अनुभवे छे. आवो अनुभव अने
आवुं भेदज्ञान ते धर्मीजीवने निर्जरानुं कारण छे. भोगोपभोगना काळ वखतेय आवुं
भेदज्ञान तेने वर्ततुं ज होवाथी निर्जरा पण थया ज करे छे. थोडाक रागादि भाव अने
कर्मबंधन छे पण ते राग अने कर्म बंनेथी भिन्नपणे ज, मात्र ज्ञायकभाव रूपे धर्मी
पोताने अनुभवे छे; पोताने रागपणे के कर्मपणे ते अनुभवता नथी. माटे ज्ञानरूपे ज
परिणमता धर्मीने बंधन नथी.
लीधुं त्यां रागादि प्रत्ये संपूर्ण विरक्ति छे.–ए ज धर्मीनो खरो वैराग्य छे. रागने
पोतापणे अनुभव तेने वैराग्य केवो? वैराग्यना स्वरूपनी तेने खबर पण नथी. राग
अने ज्ञाननी भिन्नताना भेदज्ञान वगर साचो वैराग्य होतो नथी. आवो वैराग्य
ज्ञानीने ज होय छे. आवा भेदज्ञान पछी जेम जेम ज्ञानमां ठरतो जाय छे तेम तेम
रागनो अभाव थतो जाय छे. –आ ज मोक्षनो उपाय छे. शुद्ध ज्ञाननो अनुभव ते ज
मोक्षनुं कारण छे.