Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
आस्रवतत्त्व छे, ज्ञानतत्त्वथी ते भिन्न छे–एवा भेदज्ञानपूर्वक ज्ञानी ते
उदयभावोने छोडे छे ने ‘हुं तो एक ज्ञायक भाव छुं’ एम अनुभवे छे. आवा
अनुभवने लीधे तेने संवर थाय छे, तेने कर्मनुं बंधन थतुं नथी पण निर्जरा ज थाय छे.
जेम कादवना संयोगमां के अग्निना संयोगमां सोनुं तो सोनुं ज रहे छे, तेम कर्मना
अनेकविध संयोगमां के रागादिना संयोगमां पण ज्ञानीनुं ज्ञान तो ज्ञान ज रहे छे.
आवा ज्ञानस्वरूप आत्मा, ते विकल्पथी वेदनमां न आवे, पण अंतरना
ज्ञानवडे ज ते स्वसंवेदनमां आवे छे. राजपरिवार वच्चे रहेला भरतचक्रवर्ती पोताने
तेनाथी भिन्न आवा ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवता हता. आवा आत्मानो अनुभव कर्ये
ज जन्म–मरणनो अंत आवे छे. नरकना संयोगमां रहेला सम्यग्द्रष्टि जीव ते संयोगथी
भिन्न ज्ञानस्वरूपे ज पोताने अनुभवे छे; ए ज रीते स्वर्गना वैभवनी वच्चे रहेला
सम्यग्द्रष्टि पण पोताने ते संयोगथी भिन्न ज्ञानस्वरूपे ज अनुभवे छे. ईच्छाओ थाय
ते पण ज्ञानथी भिन्न छे. आ रीते विविध प्रकारना जे उदय विपाको ते कोई मारो
स्वभाव नथी, हुं तो तेनाथी अलिप्त एवो एक ज्ञायकभाव ज छुं–आवा ज्ञायकभावमां
शुभाशुभनुं वेदन नथी. पुण्यनो उदय पण आत्मानो भाव नथी, आत्मानो भाव तो
ज्ञायक एक भाव छे. एवा भावपणे ज धर्मी पोताने अनुभवे छे. आवो अनुभव अने
आवुं भेदज्ञान ते धर्मीजीवने निर्जरानुं कारण छे. भोगोपभोगना काळ वखतेय आवुं
भेदज्ञान तेने वर्ततुं ज होवाथी निर्जरा पण थया ज करे छे. थोडाक रागादि भाव अने
कर्मबंधन छे पण ते राग अने कर्म बंनेथी भिन्नपणे ज, मात्र ज्ञायकभाव रूपे धर्मी
पोताने अनुभवे छे; पोताने रागपणे के कर्मपणे ते अनुभवता नथी. माटे ज्ञानरूपे ज
परिणमता धर्मीने बंधन नथी.
अहा, एक परम ज्ञानभावरूप आत्मद्रव्यने बधाथी भिन्न पाडीने अनुभवमां
लीधुं छे; रागना एक कणनुं पण जेमां अस्तित्व नथी एवा ज्ञानस्वरूपने अनुभवमां
लीधुं त्यां रागादि प्रत्ये संपूर्ण विरक्ति छे.–ए ज धर्मीनो खरो वैराग्य छे. रागने
पोतापणे अनुभव तेने वैराग्य केवो? वैराग्यना स्वरूपनी तेने खबर पण नथी. राग
अने ज्ञाननी भिन्नताना भेदज्ञान वगर साचो वैराग्य होतो नथी. आवो वैराग्य
ज्ञानीने ज होय छे. आवा भेदज्ञान पछी जेम जेम ज्ञानमां ठरतो जाय छे तेम तेम
रागनो अभाव थतो जाय छे. –आ ज मोक्षनो उपाय छे. शुद्ध ज्ञाननो अनुभव ते ज
मोक्षनुं कारण छे.