ने उदय कर्मविपाकरूप ते तत्त्वज्ञायक छोडतो. (२००)
त्यागरूप छे. आम स्वभाव अने परभावनी अत्यंत भिन्नताना विवेकवडे आत्मानो
अनुभव थाय छे. आवा अनुभवने पुष्ट करतो धर्मी जीव कर्मना विपाकरूप समस्त
परभावोने छोडे छे. आ रीते ते नियमथी ज्ञान वैराग्यसम्पन्न होय छे.
तेनाथी अत्यंत विरक्ति थई ते वैराग्य; आवा ज्ञान–वैराग्य ते सम्यग्द्रष्टिनुं चिह्न छे;
ने ते ज निर्जरानुं कारण छे. ज्ञान बंधनुं कारण केम होय? अने ज्यां वैराग्य होय त्यां
बंधन केम थाय? रागमां रक्त एवो अज्ञानी जीव ज बंधाय छे.–१प० मी गाथामां
आचार्यदेव ए वात करी छे के–
ए जिनतणो उपदेश; तेथी न राच तुं कर्मोविषे.
भूलीने शुभाशुभ रागमां जे राचे छे ते कर्मोथी बंधाय छे.
छे, तेमां तन्मयता माने छे, तेने मिथ्याश्रद्धा–मिथ्याज्ञान–मिथ्या आचरणरूप त्रिदोषनो
मोटो रोग थयो छे; पोतानुं स्वतत्त्व शुं छे तेनी तेने खबर नथी. धर्मी तो स्वसन्मुख
थईने, स्वभावनुं ग्रहण अने परभावना त्यागवडे पोताना शुद्ध स्वतत्त्वने जाणे छे,
एटले के अनुभवे छे. रागादि परभावोने जे पोताना स्वभावथी जुदा पण न जाणे तेने
परभावनो त्याग केवो? ने परभावना त्याग वगर स्वभावनुं ग्रहण केवुं? स्वभावना
ग्रहण वगर धर्म केवो? रागनो हुं कर्ता, शुभरागथी मने